Monday, March 28, 2011

ये आतंकवाद की आग बुझाएंगे या भड़काएंगे



 
-डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन    Represent: Dr. Santosh Rai
 
 
देवबन्द में पिछले दिनों तथाकथित उलेमाओं की बहुचर्चित गोष्ठी द्वारा आतंकवाद को गैर-इस्लामिक घोषित करना कितना खोखला है यह उनकी घोषणा के वाक्यों से ही स्पष्ट है। जेल में बन्द मसुलमानों को अविलम्ब छोड़ने की मांग न केवल आतंकवादियों को समर्थन देती हुई दिखाई देती है अपितु भारतीय न्यायव्यवस्था व कार्यपालिका में उनके अविश्वास को भी दर्शाती है। सेक्युलर बिरादरी के कुछ पत्रकारों और राजनीतिज्ञों ने इस घोषणा का पुरजोर स्वागत किया और ऐसा दिखाया कि मानो अब आतंकवाद के दिन गिनती के बचे हैं। परन्तु जो प्रबुद्ध वर्ग शब्दों के छलावे में न आकर उनकी करनी को देखता है उन्हें इन घोषणाओं की यथार्थता पर आशंका थी जिसको बाद के घटनाक्रम ने सही सिद्ध कर दिया। क्या उन्होंने एक भी आतंकवादी को इस्लाम के बाहर किया? क्या उन्होंने एक भी आतंकवादी को गैर इस्लामिक घोषित किया क्या कश्मी में तथा अन्य आतंकी घटनाओं के शिकार हिन्दुओं के प्रति कोई संवेदना प्रकट की गई वास्तव में जेहाद शब्द की असलियत आम जनता के सामने परत-दर-परत खुलती जा रही है। इस्लामिक दर्शन के प्रति सभी वर्गों में एक आशंका निर्माण होती जा रही है। शायद इसलिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया जिससे इस्लाम के प्रति और नफरत न फैले तथा आतंकवादियों को समर्थन देने की कीमत न चुकानी पड़े। इस्लाम के जानकार इस प्रयास को जेहाद का ही एक प्रकार बताते हुए इसे जेहाद-बिल-कलम का नाम देते हैं जिसके अंतर्गत छद्मवेश में जेहाद के प्रति समर्थन निर्माण किया जाता है और इसका विरोध् करने वालों को ही कटघरे में खड़ा किया जाता है। 
जेहाद-बिल-कलम की आग की तपिश के लेखक को उर्दू प्रैस क्लब द्वारा प्रेस क्लब नई दिल्ली में आयोजित एक सेमिनार में जाकर महसूस हुई। २८ पफरवरी २००८ को तारिक नामक एक व्यक्ति ने माननीय विष्णुहरि डालमिया जैसे बड़े नामों का उल्लेख करते हुए २ मार्च २००८ को आयोजित इस कथित सेमिनार में आने का निमंत्रण दिया। इसका विषय बताया गया फासिज्म और आतंकवाद - एक सिक्के के दो पहलू भारतीय राजनीति में कुछ शब्दों का प्रयोग मनमाने अर्थों में होने लगा है। वामपंथी इस कला के हमेशा माहिर रहे हैं। फासिज्म शब्द भी ऐसा ही है जिसे जानबूझ कर वामपंथी अपने विरोधियों विशेषतया हिन्दू संगठनों के लिए प्रयोग करते हैं। विषय सुनकर ध्यान में आ गया था कि इस तथाकथित गोष्ठी में आतंकवाद को हिन्दुओं के कार्यों की प्रतिक्रिया रूप में प्रस्तुत करने का ही प्रयास किया जाएगा। परन्तु प्रैस क्लब नई दिल्ली का स्थान व माननीय डालमिया जी जैसों का नाम इससे ऐसा लगा कि इस कार्यक्रम में कुछ प्रबुद्ध लोग भी होंगे। परन्तु इस कार्यक्रम में जाकर महसूस हुआ कि यह कार्यक्रम मेरी आशंका के अनुरूप ही था। दर्शकों में अधिकांश मुस्लिम समाज के ही लोग थे। उनकी वेशभूषा व तेवर देखकर उनके इरादे समझ में आने लगे थे। डालमिया जी स्वास्थ्य अनुकूल न होने की वजह से नहीं आ सके। बाद के घटनाक्रम ने सिद्ध कर दिया कि उनका न आना अच्छा ही रहा। मैं थोड़ा विलंब से पहुँचा था परन्तु वहाँ जाकर मालूम चला कि पूर्व वक्ताओं ने हिन्दू संगठनों के विरुद्ध विषवमन ही किया। मेरे वहाँ पहँचते ही तथाकथित मानवाधिकारवादी लेखिका अरुन्धति राय को बोलने के लिए निमंत्रिात किया गया। कभी तस्लीमा नसरीन के पक्ष में बोलने वाली अरुन्धति ने वहाँ पर मुस्लिम समाज को सलाह दी कि वे तस्लीमा पर अपना समय बर्बाद न करें उसका कोई असर नहीं है। इसके बाद श्रोताओं का मूड भाँपकर उन्होंने अफजल गुरु मामले पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय पर निशाने साधने शुरू कर दिए। उनके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनके पास अपफजल गुरु को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं है। इसके बावजूद समाज में व्याप्त धारणा के आधर पर उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी जाती है। यह सब जानते हैं कि उनका यह कथन पूर्ण असत्य था। इसके बावजूद आयोजकों ने टोका नहीं अपितु श्रोताओं ने ताली बजाकर उनके इस कथन का स्वागत किया। तभी मंच से एक आवाज आई, शेम ! शेम!!। किस पर शर्म आ रही थी तभी गिलानी नामक व्यक्ति को जो संसद पर हमले में आरोपी था और सबूतों के अभाव में माननीय न्यायालय ने संदेह का लाभ देकर उसे छोड़ दिया था आमंत्रित किया गया। भरपूर तालियों से उसका स्वागत किया गया। उसके भाषण का सार भी यही था कि भारत में न तो कोई कानून है और न कोई प्रजातंत्र। यहाँ हमेशा से मुस्लिम समाज का शोषण हुआ है और अगर कुछ युवक हताश होकर हथियार उठाते हैं तो इसमें क्या गलत है प्रैस क्लब जैसे स्थान पर माननीय सुप्रीम कोर्ट संसद प्रजातंत्र, कार्यपालिका मीडिया सब पर इस प्रकार प्रहार होंगे और आतंकवाद को उचित ठहराया जाएगा तथा इसका कोई विरोध् भी नहीं करेगा यह सोचा नहीं जा सकता। इसके बाद प्रसिद्ध पत्राकार मनोज रघुवंशी को निमंत्रित किया गया। उन्होंने आतंकवाद को उचित ठहराने के प्रयास की जैसे ही निन्दा की श्रोताओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया। बड़ी मुश्किल से वह ये बात कह पाए कि जेहाद के समर्थकों को यह सोचना चाहिए कि यह उनके ही खिलाफ जाएगा। वे अत्याचारों की झूठी कहानियों के आधर पर आतंकवाद को उचित ठहरा रहे हैं तो आतंकवादियों द्वारा मारे गए व्यक्तियों के परिवार को हथियार उठाने से कोन रोक सकेगा और इसके क्या परिणाम होंगे। 
अब किन्हीं हुसैन साहब को बोलने के लिए बुलाया गया। उन्होंने आते ही हिन्दुओं के पवित्रा ग्रंथ महाभारत और रामायण पर हमले बोलने शुरू कर दिए। आयोजकों द्वारा न रोकने और श्रोताओं द्वारा उत्साहित करने पर अब उन्होंने भगवान राम पर आक्रमण किया और अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए एक भड़काने वाला और हिन्दुओं की धर्मिक आस्थाओं पर आघात करने वाला भाषण दिया। उन्होंने कहा रावण का अपराध् यही था कि उसने राम की सीता का अपहरण किया। यह किसी ने नहीं देखा कि उसने सीता के साथ कुछ किया या नहीं। इसके बावजूद एक सेना का यहां तक कि बन्दरों की सेना का भी गठन किया और लंका पर चढ़ाई कर मासूम लंकावासियों को मारा तथा लंका जला दी। राम भी एक युद्ध प्रेमी व्यक्ति थे। उनके भाषण के अंत में भी किसी ने कुछ नहीं बोला। तब मुझे बोलने के लिए बहुत ही हल्के ढंग से आमंत्रित किया गया। अब तक अरुन्धति राय को समझ में आ गया था कि मेरे बोलते ही क्या हो सकता है। इसलिए वह प्रैस क्लब छोड़कर चल दी। मैं जैसे ही बोलने के लिए खड़ा हुआ श्रोतओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया। मैंने माननीय न्यायपालिका, भारतीय प्रजातंत्रा भारतीय संसद पर हमला करने व आतंकवाद का समर्थन करने का प्रतिवाद किया और कहा कि जिस प्रकार के शब्द भगवान्‌ राम के प्रति प्रयोग किए गए अगर वैसे ही मोहम्मद पैगम्बर साहब के बारे में बोले जाएंगे तो उन्हें कैसा लगेगा। रंगीला रसूल नामक पुस्तक की अगर एक भी घटना कोई रख देगा तो क्या वे बर्दाश्त कर पाएंगे इतना सुनते ही श्रोता व मंच दोनों ही भड़क गए। १५-२० आदमी मेरे को मारने को लपके ३ व्यक्तियों ने मुझे जान से मारने की धमकी दी। एक व्यक्ति ने यहाँ तक कहा वह ६ दिसम्बर के बाद १० हिन्दू मार चुका है ११वां नम्बर अब तेरा है। तब वहाँ पर उपस्थित एक हिन्दू पत्रकार ने मुझे ही लानत भेजनी शुरू कर दी और वहाँ की जेहादी भीड़ को खुश करने के लिए मेरे व हिन्दू संगठनों के प्रति अपशब्दों का प्रयोग करना शुरू कर दिया। तब तक वहाँ पुलिस बुला ली गई और कापफी मुश्किल के बाद मैं सुरक्षित बाहर आ सका। इस गोष्ठी में फासिज्म और आतंकवाद पर कोई गंभीर चर्चा नहीं हुई। परन्तु दोनों क्या हैं यह वहाँ पर उपस्थित व्यक्तियों को समझ में आ गया होगा। दोनों का नंगा रूप वहाँ देखने को मिला। दोनों में ही असहमति को कुचला जाता है। पफासीवाद में सत्ता का आतंक होता है जबकि आतंकवाद में कुछ संगठनों का। यहाँ पर  सत्तासीन  आयोजकों और जेहादी जनता का आतंकवाद खुलकर देखने को मिला। 
मैं बाहर तो आ गया परन्तु कुछ यक्ष प्रश्न मेरे सामने खड़े हो गए :- 
१. यह एक गोष्ठी थी या जेहादियों का जमावड़ा
२. क्या इसी को जेहादी-बिल-कलम कहते हैं 
३. क्या संपूर्ण भारत में मानवाधिकारवादियों व सेक्युलरवादियों का आतंकवादियों के साथ इसी प्रकार का गठजोड़ है जैसा यहाँ देखने को मिला 
४. क्या प्रैस क्लब जैसे महत्वूपर्ण स्थान को आतंकवादियों के समर्थन व सर्वोच्च न्यायालय पर हमले के लिए दुरुपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए  
५. क्या केवल मुस्लिम समाज की आस्थाएं ही महत्त्वपूर्ण हैं जो केवल एक पुस्तक का नाम लेने से आहत हो जाती हैं और वे मारने पर उतारू हो जाते हैं  
६. क्या हिन्दू समाज की आस्था महत्त्वपूर्ण नहीं है और भगवान राम व माता सीता के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने पर कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए
७. राम के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करने व न्यायपालिका पर प्रहारों पर कथित इतिहासकार पत्रकार को केवल एक पुस्तक का नाम लेने पर अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने का अधि कार होना चाहिए 
८. क्या हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार करने पर मौन रहना परन्तु इन प्रहारों का हल्का सा प्रतिवाद करने पर भी हमला बोलना क्या यही भारत में प्रगतिशील व पंथनिरपेक्ष कहलाने की एकमात्र कसौटी है  
९. प्रैस क्लब जैसे स्थान के एक कक्ष में बहुमत होने के कारण वे अपने विपरीत विचार रखने वाले व्यक्ति को मारने का प्रयास कर सकते हैं तो अगर प्रजातांत्रिक विवशता के कारण दुर्भाग्य से उनकी संख्या अध्कि हो जाती तो क्या वे गैर- मुसलमानों का वही हाल नहीं करेंगे जो पाकिस्तान, बंग्लादेश इंडोनेशिया तथा मलयेशिया में हो रहा है 
ऐसे और कई यक्ष प्रश्न मेरे सामने हैं जिनका जवाब मैं नहीं ढूंढ पा रहा हूँ। अब मैं इन यक्ष प्रश्नों को भारत की प्रबुद्ध जनता के समक्ष प्रस्तुत करता हूँ। 
Courtesy:www.hindusthangarurav.com

1 comment:

Anonymous said...

surendra ji ,in muslman ka nam sunte hi logo m blatkar,lutera ,vasnayukt chavi banti hai yadi aisa nahi kranga to chavi khrab ho sakti hai