Wednesday, April 13, 2011

भगतसिंह की जाति बताती हैं, लेकिन अपना छिपाती हैं........

सुरेश चिपलुनकर       प्रस्‍तुति-डॉ0 संतोष राय
 
क्या आप जानते हैं कि सोनिया गाँधी किस धर्म का पालन करती हैं? निश्चित ही जानते होंगे, (गाँधी परिवार के अंधभक्तों को छोड़कर) पूरा देश जानता है कि एंटोनिया माईनो (Antonia Maino) उर्फ़ सोनिया गाँधी ईसाई धर्म का पालन करती हैं। UPA की अध्यक्षा, राष्ट्रीय सलाहकार समिति (National Advisory Council) की अध्यक्षा, सांसद इत्यादि होने के बावजूद, जब भी किसी सरकारी दस्तावेज, आधिकारिक भाषण अथवा कांग्रेस के अलावा किसी अन्य पार्टी के राजनैतिक नेता द्वारा जब भी कभी सोनिया गाँधी के “ईसाई” होने को रेखांकित करने की कोशिश की जाती है तो कांग्रेस पार्टी का समूचा “ऊपरी हिस्सा” हिल जाता है। सोनिया गाँधी को सार्वजनिक रूप से “ईसाई” कहने भर से कांग्रेसियों को हिस्टीरिया का दौरा पड़ जाता है, पता नहीं क्यों? जबकि यह बात सभी को पता है, फ़िर भी…

हाल ही में अमेरिका के वॉशिंगटन में सरकार की “अधिकृत प्रतिनिधि”, यानी वहाँ पर स्थित राजदूत सुश्री मीरा शंकर ने इमोरी विश्वविद्यालय (Emory University, USA) में आयोजित “व्हाय इंडिया मैटर्स” (Why India Matters) अर्थात “भारत क्यों महत्वपूर्ण है” विषय पर एक संगोष्ठी का उदघाटन किया। वहाँ अपने भाषण में मीरा शंकर ने भारत की “विविधता में एकता” को दर्शाने वाली “फ़िलॉसफ़ी” झाड़ते हुए कहा कि “भारत में किसी भी जाति-धर्म के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है, सभी धर्मों को तरक्की के अवसर उपलब्ध हैं, आदि-आदि-आदि-आदि, लेकिन अपनी धुन में बोलते-बोलते मीरा शंकर कह बैठीं कि, “आज की तारीख में भारत की राष्ट्राध्यक्ष एक महिला हैं और वह हिन्दू हैं, उप-राष्ट्रपति मुस्लिम हैं, प्रधानमंत्री सिख धर्म से हैं, जबकि देश की सबसे बड़ी और सत्ताधारी पार्टी की अध्यक्ष एक ईसाई हैं और महिला है…” इससे साबित होता है कि भारत की तासीर “अनेकता में एकता” की है।

वैसे देखा जाये तो मीरा शंकर के इस पूरे बयान में कुछ भी गलत या आपत्तिजनक नहीं था, परन्तु भारत सरकार को (यानी सरकार की “असली” मुखिया को) “ईसाई” शब्द का उल्लेख नागवार गुज़रा। ऐसा शायद इसलिये कि, किसी आधिकारिक एवं उच्च स्तर के शासकीय कार्यक्रम में किसी उच्च अधिकारी द्वारा खुलेआम सोनिया गाँधी के धर्म का उल्लेख किया गया। परन्तु तत्काल दिल्ली से सारे सूत्र हिलाये गये, भारत की अमेरिका स्थित राजभवन (Indian Embassy in US) की वेबसाईट से मीरा शंकर के उस बयान में “ईसाई” शब्द के उल्लेख वाली लाइन हटा ली गई।


जब पत्रकारों ने इस सम्बन्ध में मीरा शंकर से जानना चाहा तो उन्होंने “नो कमेण्ट्स” कहकर टरका दिया, जबकि उनके कनिष्ठ अधिकारी वरिन्दर पाल ने पत्रकारों से “लिखित में सवाल पूछने” की बात कहकर अपरोक्ष रुप से धमकाने की कोशिश की। सरकार की आधिकारिक वेबसाईट पर मीरा शंकर का वह भाषण भले ही “संपादित”(?) कर दिया गया हो, परन्तु यू-ट्यूब पर उस भाषण को सुना जा सकता है…




(8.00 से 8.15 पर “ईसाई महिला” शब्द का उल्लेख है)

उल्लेखनीय है कि गत वर्ष 29 नवम्बर को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की बेंच ने हरियाणा के एक रिटायर्ड डीजीपी की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी एवं प्रियंका-रॉबर्ट वढेरा के धर्म के बारे में जानकारी चाही थी। याचिकाकर्ता ने जनसंख्या रजिस्ट्रार से इन महानुभावों के धर्म की जानकारी माँगी थी, परन्तु देने से इंकार करने पर कोर्ट केस लगाया था। न्यायालय में जस्टिस मुकुल मुदगल और रंजन गोगोई की पीठ ने यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि, “सम्बन्धित पक्ष किस धर्म का पालन करते हैं, यह उनका निजी मामला है…”।

यह बात समझ से परे है कि आखिर गाँधी-नेहरू परिवार अपना “धर्म” क्यों छिपाना चाहता है, इसमें छिपाने वाली क्या बात है? और इसका कारण क्या है? क्या धर्म भी कोई “शर्म” वाली बात है? जब अमेठी और रायबरेली सीट से नामांकन भरने से पहले सोनिया और राहुल होम-हवन और यज्ञ में भाग लेते हैं तो क्या वे मतदाताओं को बेवकूफ़ बना रहे होते हैं? नैतिकता तो यही कहती है कि सोनिया गाँधी रायबरेली अथवा अमेठी में किसी चर्च जाकर शीश नवाएं, मतदाता अब समझदार हो चुके हैं, इसलिये उनके ईसाई होने (और प्रदर्शित करने) से उनके चुनाव अभियान अथवा परिणामों पर कोई फ़र्क नहीं पड़ सकता है, तो फ़िर डर कैसा? देश की आम जनता तो यह भी नहीं जानती कि रॉबर्ट वाड्रा ने कब ईसाई धर्म स्वीकार किया? रॉबर्ट वाड्रा के पिता ने ईसाई महिला से शादी की थी, तो धर्म बदला था या नहीं? आखिर इतनी “पर्दादारी” क्यों है? क्या फ़र्क पड़ता है, यदि लोग नेताओं के धर्म जान जाएं? जब उत्तरप्रदेश और बिहार के नेता अपनी-अपनी “जातियों” का भौण्डा प्रदर्शन करने में खुश होते हैं, तो “धर्म” छिपाने की क्या तुक है? यदि अपना धर्म छिपाने में नेताओं का कोई “अज्ञात भय” अथवा “जानबूझकर किया जाने वाला षडयंत्र” है… तो फ़िर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की “जाति” का उल्लेख करने पर सौ-सौ लानत है…।

हाल ही में कांग्रेस पार्टी के मुखपत्र “कांग्रेस संदेश” द्वारा भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव के 81वें शहीद दिवस पर प्रकाशित लेख में अमर शहीद सुखदेव थापर को जहाँ एक ओर जेपी साण्डर्स का “हत्यारा” बताया गया, वहीं भगतसिंह को “जाट सिख” और शिवराम राजगुरु को “देशस्थ ब्राह्मण” कहकर खामख्वाह इन अमर सेनानियों को जातिवाद के दलदल में घसीटने की घटिया कोशिश की है (Congress described freedom fighter's Caste), जो कि सिर्फ़ इनका ही नहीं, देश का भी अपमान है, हालांकि कांग्रेस पार्टी के लिये ऐसे “अपमान” कोई नई बात नहीं है… क्योंकि पार्टी का मानना है कि जिस नाम में “गाँधी-नेहरु” शब्द न जुड़ा हो, वह सम्माननीय हो ही नहीं सकता।

ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब सोनिया गाँधी को “ईसाई” कहना कांग्रेसियों को गवारा नहीं है, तो इन महान स्वतंत्रता सेनानियों की “जाति” दर्शाकर, “हत्यारा” निरूपित करके, कांग्रेस क्या साबित करना चाहती है? अब भले ही कांग्रेस इसे प्रिंटर की गलती, प्रूफ़ रीडर की गलती, लेखक की गलती इत्यादि बताकर, या फ़िर सोनिया गाँधी जो कि “भारत में त्याग और सदभावना की एकमात्र मूर्ति” हैं, देश से माफ़ी माँगकर मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश करे, परन्तु पार्टी का “असली” चेहरा, जो यदाकदा उजागर होता ही रहता है, एक बार फ़िर उजागर हुआ…। इन महान क्रांतिकारियों की जाति उजागर करके, जबकि स्वयं का धर्म छिपाकर कुछ हासिल होने वाला नहीं है… जनता अब धीरे-धीरे समझ रही है, “कौन-कौन”, “क्या-क्या” और “कैसे-कैसे” हैं…

लेखक का ब्‍लॉग हैः http://www.blog.sureshchiplunkar.com/

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