Tuesday, April 5, 2011

कुत्‍ते की टेढ़ी पूंछ पाकिस्‍तान तथा विदेश मंत्रालय और मीडिया से बेहतर आवारा कुत्‍ते

सुरेश चिपलुनकर       प्रस्‍तुतिःडॉ0 संतोष राय
 
हाल ही में भारतीय सेना की इंटेलिजेंस कोर ने सीमापार से जो रेडियो संदेश पकड़े हैं उनके मुताबिक पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी ISI ने कश्मीर में आतंकवादियों को रास्ता दिखाने वाले और सीमा पार करवाने वाले “भाड़े के टट्टुओं” यानी गाइडों का भत्ता चार गुना बढ़ा दिया है। पहले एक बार आतंकवादियों के गुट को सीमा पार करवाने पर गाइड को 25,000 रुपये मिलते थे, लेकिन अब ISI (ISI Pakistan) ने इसे बढ़ाकर सीधे एक लाख रुपये कर दिया है।

विगत कुछ माह से भारतीय सेना ने जिस प्रकार आतंकवादियों पर अपना शिकंजा कसा है और आतंकवादियों के घुसने के रास्तों पर पहरा और चौकसी बढ़ाई है, उसे देखते हुए घुसपैठ में काफ़ी कमी आई है। इसीलिये ISI को अपने कश्मीरी गाइडों का भत्ता बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा है। अमूमन गर्मियों में जब बर्फ़ पिघलती है तब भारी संख्या में आतंकवादी भारत में घुसने में कामयाब हो जाते हैं, जबकि ठण्ड में बर्फ़बारी की वजह से कई पहाड़ी रास्ते बन्द हो जाते हैं। परन्तु इन गर्मियों में पाकिस्तान को आतंकवादी इधर ठेलने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि भारतीय सुरक्षा बलों (Indian Army in Kashmir) ने छोटे-छोटे रास्तों पर जमकर पहरेदारी की है, और जंगल में चरवाहों के भेष में भटकने वाले “गाइडों” को खदेड़ दिया है। मजबूरी में ISI ने एक फ़ेरे की फ़ीस बढ़ाकर एक लाख कर दी है, फ़िर भी उन्हें गाइड आसानी से नहीं मिल रहे हैं…


खुफ़िया सूचना के मुताबिक इस समय पाक के “अनधिकृत कब्जे वाले” (Pakistan Occupied Kashmir) कश्मीर में लगभग 45 ट्रेनिंग कैम्प चल रहे हैं जिसमें 2000 आतंकवादी भारत में घुसने का इंतज़ार कर रहे हैं, ISI को इन्हें खिलाना-पिलाना और पालना-पोसना महंगा पड़ता जा रहा है। भारतीय सुरक्षा बलों ने ऊँची-ऊँची पहाड़ियों पर स्थित रास्तों को खतरनाक आतंकवादियों के लिये मुश्किल बना दिया है। लेकिन ISI और पाकिस्तान, कुत्ते की उस टेढ़ी पूँछ के समान हैं जिसे 25 साल तक एक सीधी नली में डालकर भी रखा जाये तब भी बाहर निकालने पर टेढ़ी ही रहेगी…

 इसी “टेढ़ी पूँछ” को मोहाली में अपने पास बैठाकर, घी-मक्खन लगाकर सीधी करने की बेवकूफ़ाना कोशिश, कुछ “परम आशावादी” नॉस्टैल्जिक सेकुलर्स और अमन की आशा पाले बैठी कुछ नाजायज़ औलादें करेंगी…

अब बात कुत्तों की चली है, तो एक और खबर…

भारतीय सेना ने कश्मीर घाटी में आवारा कुत्तों (Stray Dogs in Kashmir) की हत्या और उनके गायब होने के सम्बन्ध में जाँच शुरु कर दी है। श्रीनगर में पिछले एक वर्ष में ऐसा देखने में आया है कि आवारा कुत्तों के समूह के समूह अचानक मृत पाये जाते हैं या गायब हो जाते हैं। सीमारेखा पर स्थित गाँवों में यह स्थिति बार-बार देखने में आई है। सेना की दसवीं डिवीजन के प्रवक्ता लेफ़्टिनेंट कर्नल एनके आयरी ने कहा है कि यह आवारा कुत्ते (जिन्हें आवारा कहना भी एक तरह की क्रूरता है) सेना के जवानों के लिये काफ़ी मददगार सिद्ध हो रहे हैं, रात के समय किसी भी संदिग्ध गतिविधि को देखकर ये कुत्ते भौंककर जवानों को आगाह कर देते हैं। सेना के कई अफ़सरों को ये कुत्ते बेहद प्रिय हैं।


हबीब रहमान नामक सेना से रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट बताते हैं कि यह आवारा कुत्ते आसानी से सीख जाते हैं, इन्हें खाने-खिलाने का खर्च भी कम है तथा रात को इन्हें बिना किसी खतरे के इधर-उधर घूमने के लिये खुला भी छोड़ा जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह कि इन्हें सेना के विशालकाय कुत्तों की तरह आसानी से पहचाना भी नहीं जा सकता कि ये जवानों के मददगार हैं। परन्तु सेना की मदद करने की वजह से पिछले कुछ समय से इन कुत्तों की सामूहिक हत्या शुरु हो गई है। मेजर जनरल अशोक मेहता (रिटायर्ड) ने काफ़ी पहले अपने एक लेख में कृपा नामक एक कुत्ते का जिक्र किया है जिसे पहाड़ों मे घूमते समय वे पकड़ लाये थे। नियंत्रण रेखा पर गोरखा राइफ़ल्स का वह प्रिय कुत्ता था और उसने कई आतंकवादियों और घुसपैठियों को ढेर करने में मदद की थी।

आंध्रप्रदेश के DGP स्वर्णजीत सेन ने भी नक्सलवादियों के इलाकों में स्थित पुलिस थानों को ऐसे ही आवारा कुत्तों को पालने और उन्हें अपना “मित्र” बनाने की सलाह दी थी और उसके नतीजे भी काफ़ी अच्छे मिले हैं। माओवादियों (Maoists in India) और नक्सलवादियों ने कुत्तों की इस “जागते रहो” मुहिम से चिढ़कर अन्दरूनी गाँवों में कुत्तों का सफ़ाया करना शुरु कर दिया, और गाँववालों को भी धमकियाँ दी हैं कि वे गाँव में एक भी कुत्ता न रखें।

आवारा कुत्तों की संख्या में कमी लाने हेतु Animal Welfare Board ने इनकी नसबन्दी करने का प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर सरकार को भेजा है, लेकिन सरकार की तरफ़ से अभी तक कोई सहमति नहीं मिली है। इसकी बजाय सरकार में बैठे कुछ “संदिग्ध लोग” “कुत्तों को मार देने” जैसे प्रस्ताव की माँग कर रहे हैं (Stray Dogs killing in Kashmir) । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि कुत्तों को मारने की बजाय संख्या में कमी के लिये उनकी नसबन्दी ही अधिक कारगर उपाय है, परन्तु सीमापार से आने वाले आतंकवादियों के लिये यही आखिरी रास्ता बचता है कि वे दूरदराज के गाँवों से धीरे-धीरे कुत्तों को मारते चलें, ताकि सुरक्षा बलों पर निशाना साधने में आसानी हो…।

इधर भारतीय सुरक्षा बल मुस्तैदी से घुसपैठ भी रोक रहे हैं और उनकी मदद करने वाले इन कुत्तों से दोस्ती भी बढ़ा रहे हैं… जबकि उधर मोहाली में “अमन की आशा” (Aman ki Asha) करने वाले सेकुलर्स, वोटों की खातिर अपने देश की सुरक्षा को खतरे में डालकर 6500 स्पेशल वीज़ा जारी कर रहे हैं…

आम आदमी यह सोच-सोचकर उबला जा रहा है कि मुम्बई हमले (Mumbai Terror Attack 26/11) में शहीद हुए 150 से अधिक परिवारों के दिल पर क्या गुज़रेगी, जब मनमोहन सिंह हें-हें-हें-हें-हें-हें करते हुए गिलानी का स्वागत करेंगे…।

अब आप ही बताईये कश्मीर में सेना की मदद करने वाले आवारा कुत्ते ज्यादा बेहतर और आदरणीय हैं, या “क्रिकेट डिप्लोमेसी” नाम की फ़ूहड़ता परोसने वाले विदेश मंत्रालय के अधिकारी और घोटालों-अपराधों को भुलाकर क्रिकेट-क्रिकेट भजने वाले मीडिया के घटिया भाण्ड…?   आपसे अनुरोध है कि मीडिया के पागलों, भ्रष्ट नेताओं और मूर्ख अफ़सरों को चाहे कुछ भी सम्बोधन दें, लेकिन "कुत्ता" न कहें, प्रशिक्षित हों या आवारा… निश्चित रुप से कुत्ते इनसे बेहतर हैं।

लेखक का ब्‍लॉग हैः ब्‍लॉग डॉट सुरेश चिपलुनकर डॉट काम

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