Saturday, May 21, 2011

किसानों के तथाकथित मसीहा उत्तर प्रदेश में वेंटिलेटर पर लेटी कॉंग्रेस में ऑक्सीज़न देने का हसीन स्वप्न देख रहे हैं ।

श्रेष्‍ठ भारत प्रस्‍तुति-डॉ0 संतोष राय

राहुल गांधी की इस अदा पर ही लोग मर मिटते है”, “राहुल गांधी गरीबों के मसीहा बनकर उभर रहे है”, ऐसे ही फ्लेश हेडलाइने 12 मई को देश के महान चेनलों पर आ रही थी संध्या को तथाकथित सबसे तेजचेनल पर राहुल बाबा के बलिदान का महान कवरेज आ रहा था उसमे राहुल गांधी की महानता के गुणगान किए जा रहे थे हमेशा की तरह राहुल गांधी मे मीडिया को कोई खोट नजर नहीं आती, सिवाय भगवे कदमो से । भारतीय राजनीति के महान नौटंकी-कारों मे कोंग्रेसी युवराज का नाम भविष्य मे इज्जत से लिया जाएगा, विदर्भ मे आत्महत्या करनेवाले किसान की विधवा कलावती के घर पर जाकर कॉंग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने काफी ख्याति बटोरी थी इतना ही नहीं संसद मे कलावती पर भाषण देकर इनहोने खूब तालियाँ भी बटोरी । मीडिया ने उन्हें गरीबों का मसीहा बना दिया राहुल गांधी की इस ख्याति से उसको लाभ तो हुआ लेकिन कलावती का दुख ज्यों का त्यों ही बना रहा, कलावती को क्या मिला ? कलावती के दामाद ने आत्महत्या कर ली, उसने आत्म हत्या क्यों की ? इस सवाल का जवाब राहुल गांधी ने कभी नहीं ढूंढा ?ढूंढते भी कैसे उन्हें तो कलावती की झोपड़ी मे जाकर के नाटक की कलाबाजियाँ जो दिखानी थी , वह उसमें सफल हो गए होंगे भी क्यूँ नहीं हमारी मीडिया किसलिए है । दलाली और मुद्दे से भटकाने का कौशल कोई भ्रष्टों से भरी इस मीडिया से सीखें । स्वामी रामदेवजी का पूरे देश मे घूम घूम कर जागरूकता फेलाना राहुल गांधी के नौटंकी करने से अधिक महान नहीं है ऐसा मीडिया बताना चाह रही है । जिस कलावती के घर एक दिन अचानक मीडियाई गिद्धो की लाइन लग गई थी वह कलावती आज भी उसी तरह जी रही है जैसे कल तक जी रही थी । एक बार फिर राहुल गांधी किसानों का मसीहा बनने के लिए निकल पड़े हैं । इस बार उन्होने हिंदुस्तान के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश को चुना हैं । उत्तर प्रदेश के नोएडा में जमीन अधिग्रहण के लिए वे चुपके से आंदोलन स्थल पर पहुँच गए । किसानों के साथ आंदोलन में हिस्सा लिया । उत्तर प्रदेश सरकार के अत्याचार के खिलाफ रणहुंकार भरने की उन्होने घोषणा की
·  राहुल गांधी को यदि सचमुच किसानों से प्यार हैं, यदि वो किसानों की वेदना से व्यथित है तो कॉंग्रेस द्वारा शासित प्रदेशों मे किसानों की समस्या देखें ।
·  राहुल गांधी वास्तव मे लेने क्या गए थे क्या खुद कि ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल रहे थे ? केंद्र मे उसकी पार्टी कि सरकार है और वे उस भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ ड्रामा कर रहे है
·  राजधानी दिल्ली से यह दूरी कड़ीब 45 किमी है इतनी दूरी तय करने के लिए राहुल गांधी को चार दिन लगेक्यों ?
·  यही राहुल गांधी मरणासन्न कॉंग्रेस में जान फुकने के लिए बिहार गए थे लेकिन क्या हुआ बिहार मे । मुंह जलाने के बाद भी राहुल गांधी को नौटंकी करने का शौक खत्म नहीं हो रहा है ।
राहुल गांधी का न तो रणसे संबंध है और न ही कभी हुंकार भरने की जरूरत पड़ी हैं रण मे हुंकार भरने के लिए रणबांकुरा होना चाहिए जबकि वे कॉंग्रेस और मीडियाके युवराज हैं । यह और बात हैं कि स्वार्थ कि राजनीति करने के लिए कभी कभी वह कॉंग्रेस के समर्थन में नौटंकी करने के लिए निकल पड़ते है । इसी तरह भत्ता परसौल के किसानों के रण में उन्होने घुसपैठ की और मायावती सरकार के विरुद्ध हुंकार भरने लगे, उनके साथ में कॉंग्रेस के महान ओसामाजीभी थे । मायावती की पुलिस ने देर रात इस नौटंकीबाज और उसके जमुरोंको धर दबोचा । राहुल को जमानत तत्काल मिल गई नौटंकी खत्म हो गई । लेकिन कोंग्रेसियों की नौटंकी उत्तर प्रदेश में जगह जगह शुरू हो गई । कोंग्रेसियों ने सड़क पर उतरकर आंदोलन किया । संक्षेप में कहे तो कोंग्रेसी सड़क पर इसलिए उतरे ताकी कुमार राहुल को हीरो बनाया जा सके और यूपी में मरणासन्न कॉंग्रेस में जान फूँकी जा सकें । राहुल हो या उसकी बूढ़ी ब्रिगेडया फिर कॉंग्रेस पार्टी इनमें से किसी को भी किसानों के आंदोलन से कुछ भी लेना देना नहीं हैं । भू सम्पादन मामलों से भी इनका बिलकुल संबंध नहीं हैं । किसी न किसी बहाने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बिगुल बजाने के स्वार्थ हेतु कोंग्रेसी आंदोलन में युवराज हाजरी लगा रहे है । राहुल गांधी को यदि सचमुच किसानों से प्यार हैं, यदि वो किसानों की वेदना से व्यथित है तो कॉंग्रेस द्वारा शासित प्रदेशों मे किसानों की समस्या देखें ।
भट्टा पारसौल के किसानों की इतनी चिंता है तो आंदोलन की याद उन्हें इतनी देरी से क्यूँ आई ? पिछले शनिवार से किसान वहाँ पर आंदोलन कर रहे हैं । राजधानी दिल्ली से यह दूरी कड़ीब 45 किमी है इतनी दूरी तय करने के लिए राहुल गांधी को चार दिन लगेक्यों ? यदि वे सचमुच किसानों के हितैषी और हमदर्द है तो महाराष्ट्र के जैतापुर में किसानों के आंदोलन में शामिल क्यों नहीं हुए ? क्या जैतापुर और भट्टा पारसौल अलग अलग देश के गाँव है ? महाराष्ट्र के जैतापुर मे, फ्रांस की दिवालिया हुई कंपनी को अभय-दान देने हेतु चलाई जा रही अणु-परियोजना का विरोध कर रहे ग्रामीण किसानों पर गोलीयां इसी कॉंग्रेस की सरकार ने चलवाई । उस समय राहुल गांधी का किसान प्रेम इटली मे था या कोलम्बियां मे हिलोरे ले रहा था । इतना ही नहीं महाराष्ट्र में सेज के लिए भू संपादन के खिलाफ किसान सड़क पर उतरे थे अमरावती, यवतमाल में भी परियोजना पीड़ित किसानों ने आंदोलन किया था उस समय सोनियासुततुम्हारा किसान धर्म कहां थाा
जागरूक मीडिया के जागरूक मसीहा
रोजगार गारंटी योजना के मजदूरों के साथ प्लास्टिक की टोकरी में पत्थर और मिट्टी ले जाने का नाटक हो या फिर उड़ीसा के आदिवासी के झोपड़े मे एक रात गुजारने का मामला हो या दूर मुंबई की लोकल में सुरक्षा रक्षकों की घेरेबंदी में प्रथम श्रेणी की यात्रा हो इस तरह के नाटक इस तथाकथित युवराज ने किए है सभी नाटको मे इस नए नाटक का भी शुमार हो गया है । ऐसा नहीं हैं कि उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार किसानों, श्रमिकों, शोषितों, दलितों और पीड़ितों के हिट में काम कर रहीं हैं । मायावती सरकार का इन पर जुल्म जारी हैं लेकिन इस राजकुमार में किसानों के प्रति का जो उफान आया है वह राजनीतिक स्वार्थ के लिए ही हैं । यही राहुल गांधी मरणासन्न कॉंग्रेस में जान फुकने के लिए बिहार गए थे लेकिन क्या हुआ बिहार मे । मुंह जलाने के बाद भी राहुल गांधी को नौटंकी करने का शौक खत्म नहीं हो रहा है ।
अब वह उत्तर प्रदेश में वेंटिलेटर पर लेती कॉंग्रेस में ऑक्सीज़न देने का हसीन स्वप्न देख रहे हैं । नोएडा की नौटंकी इसी का एक हिस्सा है । किसान हित की धमकी उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी और उनकी पार्टी कॉंग्रेस की सहायता कर पाती है या वहाँ पर भी बिहार जैसा हाल होगा ? यह तो समय ही बताएगा पर इतना तो तय है कि इस प्रकार कि नौटंकी से न तो व्यक्तित्व कि प्रतिभा बढ़ेगी और न ही पार्टी कि शान । यह बात इस गांधी को कब समझ मे आएगी ? जाते जाते किसानों के इस तथाकथित मसीहा से एक गंभीर प्रश्न है कि वे भट्टा पारसौल मे वास्तव मे क्या लेने गए थे क्या खुद कि ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल रहे थे ? केंद्र मे उसकी पार्टी कि सरकार है और वे उस भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ ड्रामा कर रहे है….

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