Saturday, May 21, 2011

‘मुद्दे’ की तलाश में भटकती भाजपा

निर्मल रानी              प्रस्‍तुति-डॉ0 संतोष राय
                        पिछले दिनों पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों में अनपेक्षित रूप से कांग्रेस अथवा कांग्रेस गठबंधन दलों को अधिकांश राज्यों में सफलता प्राप्त हुई जबकि एक राज्य तमिलनाडु डी एम के हाथ से निकल कर अन्नाडीएमके  के पाले में चला गया। तमिलनाडु का यह चुनाव परिणाम इसलिए अपेक्षित था क्योंकि देश के अब तक के सबसे बड़े 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सरताजए राजा तमिलनाडु की डीएम के पार्टी के सदस्य थे। इतना ही नहीं बल्कि डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि की पुत्री कनिमोझी भी इसी घोटाले में संदिग्ध है तथा किसी भी समय कानूनी कार्रवाई का सामना करते हुए बेनका़बहो सकती है। यहां यह भी $गौरतलब है कि अन्ना डी एमके प्रमुख जयललिता भी घोटालों के आरोपों का सामना कर चुकी हैं। इन चुनावों में कुल मिलाकर जहां कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन के साथ अधिकांश राज्यों की सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत की वहीं देश का मुख्य विपक्षी दल भाजपा इन पांचों राज्यों की कुल 824 सीटों में मात्र 4 सीटें जीत पाने में ही सफल हो सकी। इन ताज़ातरीन चुनाव परिणामों में जहां वामपंथी दल सी पी एम को पश्चिम बंगाल व केरल की सत्ता गंवाने जैसा बड़ा राजनैतिक धक्का लगा वहीं भारतीय जनता पार्टी को भी सभी पांचों राज्यों में अपनी मुंह की खाते हुए घोर मायूसी का सामना करना पड़ा।
                        भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के विवादित मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी असम के स्टार चुनाव प्रचारक थे जबकि पार्टी ने यहां वरुण गांधी को पर्यवेक्षक नियुक्त किया था। बंगलादेशी शरणार्थियों के मुद्दे को उछालकर सांप्रदायिक राजनीति को हवा देने वाली भाजपा का यह तीर असम में $खाली गया। और मुख्यमंत्री तरुण गोगोई पहले से अधिक लोकप्रियता तथा अधिक सीटों के साथ पुन: सत्ता में वापस आए और मुख्यमंत्री पद की हैट्रिक बना डाली। यानी भाजपा के लिए जादूगर चुनाव प्रचारक समझे जाने वाले नरेंद्र मोदी का वाईब्रेंट गुजरात का जादू असम में नहीं चल सका। भाजपा के एक दूसरे फायरब्रांड युवा स्टार चुनाव प्रचारक वरुण गांधी ने भी अपने तीखे तीर असम में खूब चलाए। परंतु सब कुछ निरर्थक साबित हुआ। अभी कुछ ही दिन पूर्व गुजरात में गांधीनगर के नगरनिगम चुनाव संपन्न हुए थे। इन चुनावों में भी कांग्रेस ने भाजपा को धूल चटाकर नरेंद्र मोदी के पैरों तले से ज़मीन खिसका दी। हरियाणा के गुडग़ांव नगर निगम चुनावों में भी भाजपा गठबंधन का सफाया हो गया है। ज़ाहिर है पार्टी अपने इस गिरते हुए ग्राफ को लेकर अत्यंत चिंतित व गंभीर है। और यही हालात पार्टी को इस बात के लिए मजबूर कर रहे हैं कि पार्टी किन्हीं ऐसे ज्वलंत, आकर्षक, सामयिक व लोकप्रिय अथवा लोकलुभावने मुद्दों की तलाश करे जो पार्टी के इस घटते जा रहे जनाधार पर नियंत्रण रखते हुए पार्टी की साख को दोबारा $कायम कर सकें।
                        यही वजह है कि भाजपा कभी 26 जनवरी को लाल चौक पर तिरंगा फहराने के मुद्दे को बहाना बना कर देश में हंगामा खड़ा करने की कोशिश करती है तो कभी भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत मुद्दे को ही अपनेे लिए संजीवनी समझने लग जाती है। $खासतौर पर जबसे जनलोकपाल विधेयक संसद में लाए जाने की मांग को लेकर वरिष्ठ गांधीवादी नेता अन्ना हज़ारे के आंदोलन को राष्ट्रव्यापी समर्थन मिला उसे देखकर न केवल भारतीय जनता पार्टी बल्कि और भी कई लोगों व संगठनों को यही समझ में आया कि कांग्रेस अथवा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार को अस्थिर करने का तथा जनता को अपनी ओर आकर्षित करने का सबसे सामायिक व बेहतरीन मुद्दा  भ्रष्टाचार ही हो सकता है। लिहाज़ा इस देश में जहां देखो वहीं और जिसे देखो वही भ्रष्टाचार जैसे विकराल मुद्दे के विरुद्ध अपना परचम बुलंद किए दिखाई दे रहा है। भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए उतावली नज़र आने वाली यह शक्तियां यह भी नहीं समझना चाहतीं कि भ्रष्टाचार को लेकर स्वयं उनके अपने नेता, समर्थक व कार्यकर्ता कितने स्वच्छ,ईमानदार व भ्रष्टाचार से पाक-सा$फ हैं। यह स्वयं समझें या न समझें परंतु देश की जनता इन तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधियों की वास्तविकता तथा इनके इरादों को भलीभांति समझती है। विधानसभा के ताज़ातरीन चुनाव परिणाम इस बात का प्रमाण हैं।
                        पिछले दिनों पंजाब राज्य में भाजपा ने अपने पांच मंत्रियों को अकाली दल सरकार से हटा कर नए मंत्रियों को शपथ दिलाई। इनमें कुछ पुराने चेहरे भी शामिल थे। यह $कवायद पार्टी ने इसलिए की थी क्योंकि सीबीआई ने भाजपा के एक विधायक को लाखों रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा था। जांच में यह पता चला था कि संसदीय सचिव का पद रखने वाले इस विधायक ने यह पैसे भाजपा के एक सबसे वरिष्ठ मंत्री के कहने पर उसी के लिए रिश्वत के तौर पर लिए थे। इस घटना के बाद यह बात भी सामने आई थी कि भाजपा हाईकमान ने पंजाब के अपने सभी मंत्रियों से 35-35 लाख रुपये कुछ समय पूर्व ही लिए थे। एक भाजपा विधायक का यह कहना था कि पार्टी की यह मांग आखिर  किस प्रकार से पूरी  की जा सकती थी? आखिर कहीं से पैसों का प्रबंध करके ही तो पार्टी को पैसे दिए जाते हैं। और  रिश्वत के इसी खेल में सीबीआई ने भाजपा विधायक तथा भाजपा के एक वरिष्ठ मंत्री के पीए को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया।
                        भाजपा का सबसे बड़े वित्तीय सहयोगी बेलारी(कर्नाट्क)के रेड्डी बंधु हैं। पूरा देश जानता है कि अवैध खनन जैसे भ्रष्टाचार में यह परिवार कितना लिप्त है। आज यह रेड्डी बंधु धनबल के मामले में इस हैसियत में हैं कि वे कर्नाट्क की राजनीति में जब चाहें तब तूफान खड़ा कर सकते हैं। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ऐसे लोगों को अपनी कमाऊ संतानसमझता है। उधर कर्नाट्क के मुख्यमंत्री येदिरप्पा पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगने के बावजूद भ्रष्टाचार के विरोध का बिगुल बजाने को उतावली भाजपा येदिरप्पा को उनके पद से हटाने के लिए तैयार नज़र नहीं आती। येदिरप्पा के विषय में तो भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी स्वयं यह कह चुके हैं कि येदिरप्पा ने अनैतिक कार्य किए हैं। परंतु  भाजपा के लिए तो लगता है कि राजनीति मे अनैतिकता भी कोई $खास मुद्दा है ही नहीं । अन्यथा यदि पार्टी को भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े होने का इतना ही शौक़ या भ्रम था तो उसे भ्रष्टाचारियों से अपनी पार्टी को पूरी तरह पाक-सा$फ कर देश को यह दिखा देना था कि पार्टी भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के पूरी तरह िखलाफ है चाहे वह पार्टी का बड़े से बड़ा नेता हो, $फाईनेंसर हो, मुख्यमंत्री,मंत्री,पदाधिकारी या मामूली कार्यकर्ता। परंतु भ्रष्टाचार के विषय पर पार्टी ऐसा करने के बजाए जनता की आंख में धूल झोंकने या उसे गुमराह करने पर ज्य़ादा विश्वास करती दिखाई देती है अन्यथा बंगारू लक्षमण जैसे भाजपा अद्दयक्ष को रिश्वत लेते हुए कैमरे के सामने रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद उनके स्थान पर उनकी पत्नी को राजनैतिक अहमियत हरगिज़ न देती। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के  नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव भी रिश्वत लेते टीवी. पर दिखाई दिए। परंतु भाजपा आज भी छत्तीसगढ़ में उनका भरपूर इस्तेमाल कर रही है तथा पार्टी में उनकी सक्रियता का लाभ उठा रही है। ऐसा ही येदुरप्पा को लेकर भी है। उधर नरेंद्र मोदी भी गुजरात दंगों को लेकर एक के बाद एक कई मामलों में उलझते जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में भी तमाम मंत्री व नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हुए हैं।
                                                पार्टी के इन ज़मीनी हालात की तरफ देखने के बजाए पार्टी को सिर्फ यही सुझाई दे रहा है कि इस समय देश में भ्रष्टाचार के विरूद्ध बने आम वातावरण का किसी प्रकार लाभ उठाया जाए और देश की जनता को किसी तरह यह समझा दिया जाए कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध सबसे सशक्त लड़ाई केवल भाजपा ही लड़ सकती है। अपने इसी प्रयास को अमली जामा पहनाने के म$कसद से पार्टी ने अपने युवा विंग अर्थात् भारतीय जनता युवा मोर्चा के नाम पर एक और नया खेल खेलने की योजना बनाई है। भारतीय जनता युवा मोर्चा ने शीघ्र ही राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है। इस कार्यक्रम को नाम दिया गया है एक दौड़ भ्रष्टाचार के िखलाफ। इस कार्यक्रम के अंतर्गत यह योजना बनाई गई कि निर्धारित तिथि व निर्धारित समय पर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा कार्यकर्ता अपने-अपने शहरों व जि़लों में किसी प्रमुख स्थल या प्रमुख चौक-चौराहे पर इक हों तथा दो से लेकर तीन किलोमीटर तक का फासला दौड़ के रूप में तय कर किसी दूसरे प्रमुख स्थल पर इस दौड़ का समापन करें। इस कार्यक्रम को नारा दिया गया है कि-है दम तो बढ़ाओ कदम। इस कार्यक्रम की व्यापक योजना भी तैयार कर ली गई है। इस प्रस्तावित भ्रष्टाचार विरोधी दौड़ में कार्यकर्ताओं से अधिक ज़ोर झंडे व पोस्टरों पर दिया गया है। खबर है कि प्रत्येक प्रदर्शन में कम से कम पांच सौ बड़े झंडे तथा इसके अतिरिक्त तमाम हॉर्डिंग्स,पोस्टर व बैनर कार्यक्रम स्थल व कार्यक्रम के पूरे मार्ग पर लगाए जाने के निर्देश दिए गए हैं।
                        अब यह नहीं कहा जा सकता कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रस्तावित इस दौड़ में बंगारु लक्ष्मण,दिलीप सिंह जूदेव व येदुरप्पा तथा पंजाब के रिश्वत$खोर व भ्रष्ट मंत्रीगण भाग लेंगे या नहीं? परंतु कम से कम यह बात तो निश्चित तौर पर कही ही जा सकती है कि अन्ना हज़ारे तथा बाबा रामदेव जैसे लोगों द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध आगे आकर आवाज़ उठाने के बाद तथा इन्हें मिल रहे जनसमर्थन से लालायित भारतीय जनता पार्टी ने अपने लिए भी इसी ज्वलंत मुद्दे को ही एक उपयुक्त मुद्दे के रूप में चिन्हित किया है। ऐसे में एक अदद मुद्दे की तलाश में भटक रही भाजपा अब भी यही समझ रही है कि शायद भ्रष्टाचार जैसा मुद्दा ही राजनीति में उसकी वैतरणी को पार लगा दे।                 

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