Friday, June 3, 2011

सविधानेत्तर वैकल्पिक सरकार


हृदयनारायण दीक्षित

प्रस्‍तुति-डॉ0 संतोष राय

भारत में सविधान की सत्ता है, लेकिन सविधानेत्तर सस्था गढ़ना काग्रेस के बाएं हाथ का खेल है। सोनिया गाधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ऐसी ही सविधानेत्तर सत्ता है। सविधान में ऐसी परिषद का कोई प्रावधान नहीं है। 2004 में गठित इस परिषद को तत्कालीन राजग सयोजक जार्ज फर्नाडीस ने 'सविधानेत्तर वैकल्पिक सरकार' कहा था। कुछ टिप्पणीकारों ने इसे संप्रग का योजना आयोग भी बताया था। सोनिया गाधी की 'सर्वोपरि सत्ता' ही इस परिषद के गठन का मुख्य उद्देश्य था, लेकिन कानूनी दृष्टि से यह लाभ का पद था। सो विरोध हुआ। भारी विवाद के चलते उन्होंने परिषद की अध्यक्षता व ससद की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। उनके लिए परिषद की अध्यक्षता सहित कुछ अन्य पदों को लाभ के पद की परिभाषा से मुक्त किया गया। सप्रग सरकार की दूसरी पारी में मार्च 2010 को उनकी दोबारा ताजपोशी हुई। प्रधानमत्री मनमोहन सिह ने परिषद के पहले कार्यकाल को ऐतिहासिक बताया। प्रधानमत्री ने सोनिया गांधी को अध्यक्ष मनोनीत किया लेकिन परिषद के कार्य सचालन नियमों के अनुसार वह बाकी सदस्यों की नियुक्ति अध्यक्ष सोनिया गाधी के परामर्श से ही कर पाए। परिषद सचमुच में ऐतिहासिक है। प्रधानमत्री के प्राधिकार भी सीमित हैं। परिषद विधेयकों के प्रारूप भी बनाती है। भूमि अधिग्रहण कानून व सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े विधेयकों को लेकर परिषद की खासी आलोचना हुई है।
परिषद ने 1894 में बने भूमि अधिग्रहण कानून में सशोधन का अव्यावहारिक प्रस्ताव किया है। भूमि अधिग्रहण का वर्तमान कानून किसान विरोधी है। यह 'कंपनी हित' को जनहित बताता है। सरकारें जनहित के नाम पर किसानों की भूमि छीन कर औद्योगिक घरानों को दे रही हैं। सारे देश के किसान आंदोलित हैं। उत्तर प्रदेश में आंदोलित किसानों पर नौ बार गोली और दर्जनों बार लाठी चली है। महाराष्ट्र के जैतापुर परमाणु सयत्र के विरुद्ध किसानों का आंदोलन है। हरियाणा और राजस्थान के किसान भी भूमि अधिग्रहण को लेकर आंदोलित हैं। औद्योगिक घरानों और किसानों के बीच टकराव है, लेकिन सरकार और कानून औद्योगिक घरानों के पक्ष में हैं। परिषद ने भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों को पजीकृत कीमत-सर्किल रेट का छह गुना देने की सिफारिश की है। सर्किल रेट बाजार मूल्य नहीं होता। कृषि भूमि की कीमत बाजार रेट से भी नीची तय करने का अधिकार इस परिषद को किसने दिया?
परिषद द्वारा प्रस्तावित 'सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक' निंदा का विषय बना है। विधेयक का पूरा प्रारूप सांप्रदायिक और अलगाववादी है। इसके अनुसार किसी 'समूह' के विरुद्ध किया गया अपराध सांप्रदायिक हिंसा है। यहा अल्पसख्यक समुदाय 'समूह' है। लेकिन बहुसख्यक हिंदू 'समूह' की परिभाषा में नहीं आते। इस विधेयक में सांप्रदायिक हिंसा के लिए हिंदुओं को ही दोषी मान लिया गया है। माना गया है कि अल्पसख्यकों की ओर से कभी सांप्रदायिक हिंसा नहीं होती। यहा गोधरा ट्रेन कांड सहित अनेक घटनाओं की अनदेखी की गई है। प्रारूप में राष्ट्रीय एकता को खंडित करने वाली वोट बैंक राजनीति है। प्रारूप में न्याय और क्षतिपूर्ति के लिए सात सदस्यीय प्राधिकरण के गठन का सुझाव है। प्राधिकरण के सात में से चार सदस्य अल्पसख्यक समूह के होंगे। यहा देश के बहुसख्यक समुदाय को वैसे ही प्रथम दृष्टया अभियुक्त मान लिया गया है, जैसे अंग्रेजी शासकों ने अनुसूचित जातियों के विरुद्ध क्रिमिनल ट्राइब एक्ट बनाया था। तब कई जातियों को जन्मत: 'क्रिमिनल ट्राइब' के रूप में अभिज्ञात किया गया था। प्रारूप में संपूर्ण बहुसख्यक समुदाय को सांप्रदायिक हिंसा का अभ्यस्त मान लिया गया है।
विधेयक कानून का मसौदा होते हैं। भारत के हरेक ससद सदस्य/विधानमंडल के सदस्य को विधेयक प्रस्तुत करने का अधिकार है, लेकिन व्यावहारिक रूप में सरकारें ही विधेयक लाती हैं। वे विधेयक लाने के उद्देश्य और कारण बताती है। सदन में सभी प्रावधानों पर बहस होती है। विश्व के सभी जनतात्रिक देशों में विधि निर्माण का काम ससद/विधायिका ही करती है। आखिरकार राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को विधेयक तैयार करने का सविधानेत्तर अधिकार किसने दिया? अन्ना हजारे के अनशन के समय जनलोकपाल विधेयक को लेकर नागरिक समाज के अधिकारों का मजाक उड़ाया गया था। मूलभूत प्रश्न यह है कि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद नागरिक समाज से ज्यादा अधिकार सपन्न क्यों और कैसे हैं? हजारे और उनके समर्थकों को सरकारी उद्घोषणा द्वारा विधेयक का प्रारूप तैयार करने वाली समिति में शामिल किया गया है। लेकिन परिषद को विधेयकों का प्रारूप तैयार करने का अधिकार देने की कोई सरकारी उद्घोषणा नहीं हुई। आखिरकार राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की वैधानिकता क्या है? सविधान या कानून में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है। बावजूद इसके परिषद प्रधानमत्री और उनकी कैबिनेट से भी बड़ी परासवैधानिक सत्ता है। बेशक परिषद के खाद्य सुरक्षा संबधी मसौदे को सरकार लागू नहीं कर पाई लेकिन परिषद के अध्यक्ष के रूप में एक सदेश देने की कोशिश की गई कि सोनियाजी खाद्य सुरक्षा चाहती हैं। प्रधानमत्री ही ढीले हैं।
परिषद ने प्रधानमत्री का प्राधिकार घटाया है। परिषद प्रधानमत्री और उनकी मत्रिपरिषद से बड़ी परासवैधानिक सस्था है। प्रधानमत्री और सभी मत्रिगण अपने कृत्यों के लिए ससद में जवाबदेह हैं, लेकिन परिषद किसी भी सवैधानिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं है। बेशक परिषद एक परामर्शदात्री सस्था है, लेकिन वह स्वय देश के किसी भी राजनीतिक/गैरराजनीतिक सगठन से संवाद नहीं करती। खाद्य सुरक्षा विधेयक पर परामर्श देने के पहले उसने सरकार का दृष्टिकोण जानने का कोई प्रयास नहीं किया। भूमि अधिग्रहण कानून के बारे में भी उसने किसी किसान सगठन से संवाद नहीं किया। सांप्रदायिक हिंसा कानून के मसौदे पर उसने बहुसख्यक समुदाय के किसी सगठन या प्रतिनिधि से कोई बातचीत नहीं की। बावजूद इसके वह सबसे बड़े 'राष्ट्रीय सलाहकार' की भूमिका में है।
परिषद का खर्च प्रधानमत्री कार्यालय के बजट आवटन से जुड़ा हुआ है। अध्यक्ष के रूप में सोनिया गाधी कैबिनेट मत्री के ओहदे से सम्मानित हैं। परिषद के कार्य सचालन के लिए ससद का कोई कानून नहीं है, लेकिन परिषद विधेयकों का प्रारूप बनाने जैसे सविधानेत्तर काम करती है। सोनिया गाधी बेशक काग्रेस से बड़ी हैं, लेकिन सविधान से बड़ी नहीं है। काग्रेस उन्हें उत्तराधिकार में प्राप्त पार्टी और प्रापर्टी है। वह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, पुत्र राहुल राष्ट्रीय महामत्री हैं। कोई भी सविधानेत्तर व्यवस्था ज्यादा दिन तक नहीं चल सकती।
हृदयनारायण दीक्षित: लेखक उप्र विधानपरिषद के सदस्य हैं

दैनिक जागरण से साभार

No comments: