Saturday, July 30, 2011

हिन्दुस्तान के हिन्दुओं के दमन का सेकुलर षड़यंत्र

प्रो. राकेश सिन्हा
प्रस्‍तुतिः डॉ0 संतोष राय
बाल गंगाधर तिलक, महर्षि अरविन्द,लाला लाजपत राय, स्वामी दयानन्दसरस्वती जैसी राष्ट्रवादी विभूतियों की बात तो दूर सोनिया पार्टी की मुस्लिम तुष्टिकरण राजनीति अगर इसी रफ्तार से जारी रही तो समाजवादी आचार्य कृपलानी, मार्क्सवादी बी.टी. रणदिवे, सर्वोदय नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे लोगों पर भी साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने, कथित अल्पसंख्यकों को आहत करने एवं दुष्प्रचार करने के आरोप लग सकते हैं। फिर न सिर्फ उनके लेखों एवं प्रकाशित भाषणों पर प्रतिबंध लग सकता है बल्कि उन सब पर मरणोपरांत मुकदमा भी चल सकता है। यह बात अतिशयोक्ति नहीं, एक कटु सत्य है। जे.पी. पर 194

6 में मुस्लिम लीग ने सूखा, बाढ़ राहत के दौरान हिन्दुओं को मुस्लिमों के खिलाफ भड़काने का आरोप लगाया था। केरल में मार्क्सवादी सरकार द्वारा पचास के दशक में नई शिक्षा नीति लागू की गई थी। तब ईसाइयों ने उसका जमकर विरोध किया था। उस समय रणदिवेंने कैथोलिक समुदाय को प्रतिक्रियावाद का एजेंट कहकर उन पर विदेशी धन का दुरूपयोग करने का आरोप लगाया था। आचार्य कृपलानी के एक भाई का इस्लाम में मत परिवर्तन कराया गया था। उसने अपने एक और भाई का अपहरण कर उसे जबरन इस्लाम में मतांतरित करा लिया था। तब कृपलानी ने इस्लाम पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह व्यक्ति को क्रूर बनाकर उसमें मजहब के प्रति अंधानुराग पैदा कर देता है। ये सभी बातें आपराधिक कानून के अंतर्गत आ जायेंगी यदि प्रिवेंशन ऑफ कम्युनल एंड टारगेटिग वायलेंस बिल-2011कानून बन जाता है तो।

जहर बुझा मसौदा

इस विधेयक के मसौदे पर गौर करें तो ऊपर कही गई बातों से कहीं अधिक घातक षड़यंत्र से पर्दा उठता है। विधेयक में कुल नौ अध्याय और 138 धाराएं हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह विधेयक आखिरकार क्यों लाया जा रहा है और इसका उद्देश्य क्या है, इस पर एक शब्द नहीं है। यह देश के नागरिकों के आपस में शत्रुतापूर्ण भाव रखने वाले दो वर्ग बना देती है। एक वर्ग में पांथिक और भाषायी अल्पसंख्यकों तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को रखा गया है। इसे ग्रुपके द्वारा सम्बोधित किया गया है। यही ग्रुप का तात्पर्य मूलतः मुस्लिम और ईसाई समुदायों से है। गु्रप से बाहर के लोगों को अन्य माना गया है।

इस विधेयक के अनुसार सिर्फ अल्पसंख्यकों यानी गु्रप के सदस्यों की जान-माल की किसी भी प्रकार की क्षति साम्प्रदायिक और उद्देश्यपूर्ण हिंसा मानी जायेगी। अगर हिन्दुओं की जान-माल की क्षति अल्पसंख्यक सदस्यों द्वारा पहुंचायी जाती है तो यह साम्प्रदायिक या उद्देश्पूर्ण हिंसा नहीं मानी जायेगी। (देखे धारा 3 (सी))। अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति के व्यापार में बाधा पहुँचाने या जीविकोपार्जन में अड़चन पैदा करने या सार्वजनिक रूप से अपमान करने को शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाने वाला अपराध माना गया है। कोई हिन्दू मारा जाता है, घायल होता है उसकी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है, वह अपमानित होता है, उसका बहिष्कार होता है यह कानून उसे पीड़ित नहीं मानेगा। पीड़ित व्यक्ति इस मसौदे के अनुसार सिर्फ वही है जो इस ग्रुप का सदस्य है। अगर हिन्दू महिला अल्पसंख्यक वर्ग के किसी दुराचारी द्वारा बलात्कार का शिकार बनाई जाती है तो यह कानून उसे बलात्कार नहीं मानेगा। इस विधेयक (धारा 7) के अनुसार, अगर अल्पसंख्यक समुदाय की महिला के साथ कोई इस प्रकार की घटना गु्रप के बाहर के व्यक्ति के द्वारा घटती है तो उसे लैंगिग अपराध के लिए दोषी माना जायेगा। अर्थात् इमराना के ससुर द्वारा इमराना के साथ बलात्कार करना इस मसौदे के अनुसार बलात्कार नहीं था।

न बहस न विमर्श

इसमें गवाह की नई परिभाषा रची गई है। अल्पसंख्यकों के साथ घटी घटना की जानकारी रखने वाला ही गवाह होगा। इसके अनुसार बहुसंख्यकों के संबंध में जानकारी रखने वाला गवाह नहीं माना जायेगा। दुष्प्रचार को दूसरे अध्याय की धारा-8 में इस तरह परिभाषित किया गया है कि इतिहास में से लाल-बाल-पाल जैसे चिंतकों का लिखा तो प्रतिबंधित हो ही जायेगा, पंथनिरपेक्षता पर वैकल्पिक बहस भी समाप्त हो जायेगी। आप बाइबिल, कुरान, मुस्लिम पर्सनल लॉ, मुस्लिम नीतियों-कुरीतियों अल्पसंख्यक मांगों-आंदोलनों, संगठनों पर टीका-टिप्पणी, विमर्श नहीं कर सकते हैं। कोई भी दूसरा व्यक्ति (यानि हिन्दू) अगर बोलकर या लिखकर या विज्ञापन, सूचना या किसी भी तरह से ऐसा कुछ भी करता है जिसे अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति या समुदाय के विरूद्ध भड़काऊ स्थिति पैदा करने वाला मान लिया जाता है तो उसे दुष्प्रचार फैलाने का अपराधी माना जायेगा। इतिहासकार मुशीरूल हसन ने तो लाल-बाल-पाल पर अल्पसंख्कों को स्वतंत्रता आंदोलन में अलग-थलग करने का दोषी माना था। यानी अब लाल-बाल-पाल को प्रकाशित करने, पढ़ने और उद्घृत करने वाले जेल जाने के लिए तैयार रहें।

विधेयक में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है। हिन्दू संगठनों को निशाना चतुराई से बनाया गया है। अगर बहुसंख्यक समाज का व्यक्ति अल्पसंख्यक समाज के लिए उपरोक्त किन्हीं भी अपराधों का दोषी है तो उस संगठन के मुखिया पर भी आपराधिक कानून लगाया जायेगा जिससे उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध है। संगठन भले ही पंजीकृत हो या न हो।

हिन्दू ही होगा अपराधी

बचाव का बस यही रास्ता रह जायेगा कि बहुसंख्यक अल्पसंख्कों के मन, मानसिकता, मस्तिष्क के अनुकूल व्यवहार करें एवं दासता के भाव से रहें। शिया-सुन्नी, ईसाई-मुस्लिम झगड़े पर यह कानून लागू नहीं होगा। उन्हें दंगा करने का कथित विशेषाधिकार दिया गया है। अनुसूचित जाति या जनजातियों को इस मसौदे में इसलिए रखा गया है कि अगर आप उन पर ईसाई मिशनरियों ,द्वारा सुनियोजित मतांतरणया इस्लामिक पेट्रो डालर का उपयोग करने का आरोप लगाकर सत्य उजागर करेंगे तो आप पर आपराधिक कानून लागू होगा। एक और बात गौरतलब है कि इस मसौदे में कोई आरोपित नहीं बल्कि हर आरोपित स्वतः अपराधी मान लिया गया है। उसे ही साबित करना पड़ेगा कि वह अपराधी नहीं है।

पुलिस एवं नौकरशाही को अल्पसंख्यक का जैसे अन्तः वस्त्र बनाकर रख छोड़ा गया । कहीं भी कोई कथित अल्पसंख्कों के विरूद्ध दुष्प्रचार, घृणा फैलाने वाला महौल बना, कोई पोस्टर या लेख प्रकाशित हुआ या अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति के जान-माल की कथित रूप से क्षति हुई तो पुलिस और प्रशासन को समान रूप से जिम्मेदार माना जायेगा। उन पर आपराधिक मुकदमा चलेगा। उनके लिए अपनी खाल बचाने का एकमात्र यही रास्ता होगा कि कहीं भी कोई अंदेशा हो या न हो, हिन्दुओं को गिफ्तार करते रहें। हिन्दुओं के खिलाफ दुष्प्रचार, हिन्दू देवी-देवताओें का अपमान या जान-माल की जितनी क्षति हो जाए पुलिस एवं प्रशासन को परेशान होने की आवश्यकता नहीं होगी।

इस विधेयक ने दो अपराधिक कानून बनाए हैं। अब तक मुसलमानों के पास वैयक्तिक कानून था। अब अलग आपराधिक कानून भी उन्हें परोसा जा रहा है। इस विधेयक के मसौदे का लक्ष्य एक देश-दो विधान ही नहीं,, बल्कि इसने तो देश के संघीय ढांचे को भी नष्ट करने का इंतजाम किया है।

(लेखक प्रसिद्ध स्तंभकार है)

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