Monday, August 8, 2011

काबा का अपमान करने वाला रसूल कैसे ?

बी.एन. शर्मा
प्रस्‍तुतिः डॉ0 संतोष राय
अरब देश के मक्का शहर में स्थित एक आयताकार कमरे को "काबा "कहा जाता है.काबा इस्लामी संस्कृति और मुसलमानों की धार्मिक ,राजनीतिक ,परम्पराओं का केंद्र माना जाता है.इसीलिए विश्व के सभी इस्लामी धर्म स्थानों में काबा को सबसे पवित्र और महत्त्वपूर्ण माना जाता है.पाकिस्तान शब्द के जन्मदाता मुहम्मद इकबाल ने अपनी कुल्लियात में काबा के बारे में यह लिखा है
"दुनिया के बुतकदों में ,ये पहला घर खुदा का -हम पासबां हैं इसके वो पासबां हमारा "यानी देवस्थानों में काबा खुदा का पहला घर है .यही कारन है कि मुसलमान काबा को "बैतुल्लाह "और "खानाए खुदा "भी कहते है .कुरान में इसे "मस्जिदुल हराम "(निषिद्ध मस्जिद )भी कहा गया है .चूंकि काबे की तरफ ही मुंह करके मुसलमान नमाज पढ़ते है इसलिए काबा को "किबला "भी कहा जाता है और काबा की "तवाफ "परिक्रमा भी करते हैं .और काबा के आसपास की जगह को परम पवित्र मानते है.
1 -काबा का इतिहास और किंवदंतियाँ
इस्लामी मान्यता के अनुसार काबा का निर्माण आदम ने किया था .फिर बाद में यहूदियों औरमुसलमानों के मूल पुरुष "इब्राहिम "ने इसे अपने हाथों से दोबारा बनाया था .जैसा कि कुरआन में लिखा है -
"हमने काबा को शांति का स्थल बनाया ,और हुक्म दिया कि इब्राहिम के वास स्थान को नमाज की जगह बनाओ ,और इसके लिए हमने इब्राहीम और इस्माइल को जिम्मेदार बनाया .सूरा -बकरा .2 :125
लेकिन यहूदी ग्रंथों के अनुसार इब्राहीम कभी मक्का ( पुराना नाम बक्का )कभी नहीं गया था .लेकिन इस बात के सबूत है कि इस्लाम से पहले अरब के लोग मूर्ति पूजक थे .लेकिन अपने अनेकों देवी देवताओं के साथ यरूशलेम स्थित यहूदियों के मंदिर का भी सम्मान करते थे .उस समय उसी को खुदा का घर माना जाता था और उसी की तरफ मुंह करके प्रार्थना की जाती थी .और उसी को चढ़ावे का दान दिया जाता था .सन 66 तक यही परंपरा चलती रही .उस समय यरूशलेम पर रोमन सम्राट तीतुस ( Titus ) की हुकूमत थी .यहूदी उसका विरोध करते थे .जब विद्रोह बढ़ गया तो तीतुस ने 10 अगस्त सन 70 को यरूशलेम के मंदिर को ध्वस्त करावा दिया .लेकिन लोग मंदिर की एक दीवार को ही किबला मानकार इबादत करते रहे .मंदिर नष्ट हो जाने से अरब में मक्का के काबा का महत्त्व बढ़ गया .काबे में उस समय 360 देवी देवताओं की मूर्तियाँ थी इसके बारे में एक अरबी इतिहासकार "अल कलबी "ने अपनी किताब "किताबुल असनाम "में विस्तार से लिखा है .काबे में जितना भी दान या चढ़ावा आता था वह पुजारियों में बट जाता था .लेकिन जो काफिले यरूशलेम की तरफ जाते थे ,वह यरूशलेम के मंदिर के पुजारियों को दान देते रहे .इस्लाम आने के बाद भी कई सालों तक मुसलमान यरूशलेम के मंदिर की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते रहे.
2 -किबला क्यों बदला गया
 नमाज पढ़ने का आदेश दे दिया .इससे जो धन यरूशलेम के मंदिर को मिलता था वह काबे के पुजारियों को मिलने लगा यही नहीं मुहम्मद ने काबे का हज्ज करने का आदेश भी कुरान में लिख दिया इसके बाद मुहम्मद ने 11 जनवरी 630 में मक्का पर हमला करके काबा की सभी मूर्तियों को तुड़वा दिया ,और पुजारियों को या तो क़त्ल करा दिया या भगा दिया .बो बच गए वह डर मुसलमान बन गए .इसके बाद मुहम्मद काबे की चाभी कुरैश को देदी .इसी घटना से सम्बंधित अगली घटना है जो इस लेख का आधार है पहले काबा के आदर और सम्मान के बारे कुरान में क्या लिखा है वह दिया जा रहा है .
3 -काबा का आदर और सम्मान
वैसे तो इस्लाम के पूर्व भी अरब के लोग काबा का आदर करते थे .और उसे परम पवित्र जगह मानते थे और काबा के क्षेत्र के आसपास की जगह में भी न तो लड़ाई करते थे न क़त्ल करते थे काबा की जगह खून बहाना महापाप समझते थे .अरबों की इसी परंपरा को कुरान में भी लिया गया है जैसे -
"तुम मस्जिदे हराम (काबा )के पास न लड़ो ,जबतक कोई तुमसे लड़ने को न आये "सूरा .बकरा 2 :191
"हमने काबा को शांति का स्थान बनाया है "सूरा .अल कसस 28 :57
"हे ईमान वालो तुम इहराम की हालत में ( काबा के हज्ज के कपडे पहने ) हो तो शिकार न मारो"सूरा -मायदा 5 :95
यही कारण था कि काबा के आसपास किसी का शिकार नहीं करते थे और न किसी को शिकार का पता देते थे .अगर कोई काबा की शरण में आजाता था तो उसे क़त्ल नहीं करते थे .चाहे वह परम शत्रु ही क्यों न हो .अल्लाह की पनाह लेने वाले को छोड़ दिया जाता था .यही परंपरा थी .लोगों को यही विश्वास था कि अल्लाह का रसूल होने से मुहम्मद भी इन्हीं नियमों का पालन करेगा और काबा का सम्मान करेगा
4 -मुहम्मद की कपट नीति
मुहम्मद का मुख्य उद्देश्य लोगों से जिहाद करावा कर दुनिया पर राज करने का था ,वह लोगों को बहकाने के लिए खुद को एक शांतिप्रिय और क्षमाशील व्यक्ति होने का ढोंग करता था .उसने कुरान में लिखवा दिया कि ,
"यदि कोई मुझे क़त्ल करने लिए अपना हाथ आगे बढ़ाएगा ,to मैं उसको क़त्ल करने के लिए अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाऊंगा .मैं तो अल्लाह से डरने वाला हूँ .जो सबकी जिंदगियों का पालनकर्ता ( रब )है."सूरा -मायदा 5 :28
मुहम्मद की इन्ही बातों में फस कर कई लोग मुसलमान बन गए .जिनको मुहम्मद यातो जिहाद पर भेज देता था या फिर जकात ,या जजिया वसूल करने के काम पर लगा देता था .ऐसा ही एक व्यक्ति "इब्ने खत्तल" जिसे खुद मुहमद ने मुसलमान बनाया था ,और दुसरे लोगों के साथ जकात वसूलने के लिए भेजा था .फिर नाराज होकर काबा में ही हत्या करावा दी थी .यह वही घटना है ,जो इस्लाम की प्रमाणिक इतिहास की किताबों और हदीसों में मौजूद है .
5 -इब्ने खतल का काबा में क़त्ल
इसका पूरा नाम हलाल बिन खतलهلال بن خطل था मुहम्मद ने खतल को लोगों से जकात वसूल करने के लिए भेजा था इसके दल में कुल दस लोग थे .जिनमे 6 पुरुष और 4 औरतें थीं जिसमे एक लड़की फरताना और उसकी साथी गाना गाकर लोगों से जकात मंगाते थे .यह सभी लोग मुहमद के हाथों नए नए मुस्लमान बने थे .जब एक गाँव में यह लोग रुके ,खतल केसथियों ने एक बकरी काट कर खाना पकाया .और खाने बाद सब सो गए .और उस दिन कोई वसूली नहीं हो सकी
(सीरते रसूलल्लाह पेज .550 )
इस दल के दस लोगों के नाम इस प्रकार है .1 .इकरिमा इब्ने अल अस्वद 2 .हब्बार इब्ने अल अस्वद 3 .अब्दुल्लाह इब्ने साद इब्ने सरह 4 .मिकयास इब्ने सबह अल लैसी 5 .अल हुबैरा इब्ने नुकैया 6 .अब्दे अब्बाद इब्ने हिलाल इब्ने खतल अल अदरामी 7 .हिन्दा बिन्त उतबा 8 .सारह मलवत (अम्र बिन हाशीम की साजिंदा ) 9 .फरतना 10 .करीबा .
( किताब अल तबकात अल कबीर लेखक इब्ने साद जिल्द 2 पेज 168 ) इसी किताब के पेज 172 और 173 में यह भी  है कि जब रसूल को पता चला कि यह लोग उस दिन खाली हाथ ही वापस आ गए तो वह बहुत नाराज हुए .और इब्ने खतल कोमौत की सजादेना चाहते थे खतल जान बचने के लिए साथियों के साथ काबा पास छुप गया .लेकिन मुहमद ने उसको कैसे क़त्ल कराया यह सभी हदीसों में लिखा है .इसके कुछ प्रमाण दिए जा रहे हैं -
"अनस बिन मलिक ने कहा कि जब रसूल काबा में दाखिल हो रहे थे तो वह अपने सर पर लोहे का टोप (Helmet )और जूतियाँ पहने हुए थे .लेकिन काबा के परिसर में घुसते ही अपना टोप उतर दिया .उसी समय मूसा बिन दाउद ने रसूल से कहा कि इब्ने खतल काबा का परदा पकड़ कर उसकी आड़ में छुपा है .रसूल ने उसे पकड़ा और कहा इसे यहीं क़त्ल कर दो " .बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 582
"अनस बिन मलिक ने कहा कि जब जान बचने के लिए इब्ने खतल काबा के परदे के पीछे छुप गया ,और रसूल ने उसका क़त्ल करने का हुक्म दिया था ,तो इब्ने खतल इहराम के कपडे पहने हुआ था .मैंने यह बात रसूल के ध्यान में लायी .लेकिन रसूल ने उसके क़त्ल का हुक्म दे दिया "
सही मुस्लिम -किताब 7 हदीस 3145
यही बात मलिक मुवत्ता ने भी लिखी है
"जब इब्ने खतल काबा का पर्दा कस कर पकड़ कर खड़ा हुआ था ,और रसूल से खुदा के घर का वास्ता देकर अपनी जान की भीख मांग रहा था और कह रहा था कि मैं अल्लाह के घर की पनाह में हूँ .फिर भी रसूल ने उसके क़त्ल का हुक्म दे दिया "मुवत्ता-जिल्द 20 किताब 76 हदीस 256
इब्ने साद ने अपने इतिहास में यही बात विस्तार से लिखी है "जब इब्ने खतल ,अबी सरह ,फरताना,इब्ने जबरा काबा की शरण में थे तो रसूल ने एक आदमी "अबू बरजख "को उनका क़त्ल करने का हुक दिया .बरजख ने वहीँ पर अपने खंजर से सबके पेट फाड़ दिए .और वह खून निककने से वहीँ पर मर गए ."तबकाते साद -पेज 174
इसी पुस्तक में यह भी लिखा है "एक लड़की जो गीत गा रही थी वह किसी की नजर बचा कर भाग गयी थी और बच गयी थी .लेकिन रसूल ने उसे पकड़वा कर अपनी दासी बना लिया "सीरते रसूलल्लाह .पेज 551
6 -ताजा प्रत्यक्ष प्रमाण
इस समय रमजान का महीना चल रहा है .और मुसलमान इस महीने को पवित्र मानकर बुरी बातों से दूर रहते है .लेकिन मुझे अपनी बात को साबित करने के लिए यह लेख 45 मिनट में लिखना पड़ा .आप सब जानते हैं कि जब मुस्लिम ब्लॉगर निरुत्तर हो जाते हैं तो ,अभद्र कमेन्ट कैअने लगते हैं.लेकिन कल आसिफ नामके एक मुस्लिम ब्लॉगर ने मुझे मेल से गलियां देना शुरू कर दीं.साथ ही मुझसे दोस्ती और इस्लाम कबूल करने की दावत भी देदी .आसिफ ने रमजान की पवित्रता का उसी तरह अपमान किया जैसे से मुहम्मद ने काबा का किया था .मैंने यह लेख उसी ब्लॉगर को लक्ष्य करके जल्दी में लिखा है .मैंने आसिफ के सभी मेल अपने मित्रों को फॉरवार्ड कर दिए है .मेरे लेखों कि सच्चाई का यही प्रमाण है.
इन सभी विवरणों से यह बातें साफ़ सिद्ध होजाती हैं कि मुहम्मद कि कथनी और करनी में जमीन असमान का अंतर था .जब खुद मुहम्मद ही काबा की पवित्रता और मर्यादा को नापाक करता था ,तो उसे अल्लाह का रसूल कैसे माना जा सकता है .अगर वह रसूल होतातो अल्लाह के घर में ही खून खराबा नहीं कराता .और अगर अल्लाह की पनाह लेकर भी किसी की जान नहीं बच सकती ,तो साबित होता है कि काबा अल्लाह का घर नहीं है .और अगर काबा अल्लाह का घर नहीं है तो फिर वहां के हज्ज के नाम पर मुसलमानों को किराये में करोड़ों की छुट क्यों दी जाती है . इन रुपयों से देश के कई काम हो सकते है .अगर अल्लाह सर्व व्यापी है तो उसे एक कमरे कैद करना कहाँ तक उचित है
मिर्जा ग़ालिब ने कहा है "खुदा के वास्ते परदा न काबे का उठा जालिम ,कहीं ऐसा न हो वहां भी यही काफ़िर सनम निकले."
http://www.islam-watch.org/Kammuna/Did-Muhammad-Respect-Holiness-of-Kaba.htm

1 comment:

Anonymous said...

taliban destroyed buddha statue in this video
http://www.youtube.com/watch?v=YQ-oaUqvAS8

they can't tolerate even a hindu statue in their country

why India tolerate such a big community of muslims and their mosques and buildings, sonia and rahul should start living in pakistan