Tuesday, September 13, 2011

जेहादी-राष्ट्रद्रोही मुस्लिम आबादी से प्रेम क्यों ?

    
          विष्‍णु गुप्‍त


9/11 की इस्लामिक आतंकवादी घटना की दसवीं बरसी को अमेरिका के परिपेक्ष्य मे किस रूप में देखा जाये। क्या मान लिया जाना चाहिए कि अमेरिका मुस्लिम आतंकवाद और मुस्लिम आबादी की जेहादी मानसिकता से निरापद हो गया है? क्या अमेरिकी मुस्लिम आबादी ही अमेरिका के लिए खतरा बन बैठी है। अमेरिका खुद अपनी मजहबी-जेहादी मानसिकता से ग्रसित आबादी के निशाने पर खड़ा है। अमेरिका की मुस्लिम आबादी के लिए पहली प्राथमिकता व समर्पण इस्लाम के साथ है न कि अमेरिका के साथ।

अमेरिका के राष्ट्रपति बराम ओबामा खुद मुस्लिम है जो अफ्रीकी देशों से शरणार्थी के रूप में अमेरिका आकर बसे थे।मूल मुस्

;लिम होने के बाद भी बराक ओबामा आचरण और वैचारिक रूप में अपने आप को ईसाइयत के प्रति समर्पण दिखाते रहे हैं।फिर भी अमेरिकी राष्टवादी व मूल आबादी के लिए बराक ओबामा मुस्लिम ही हैं और राष्ट्रवादी व मूल अमेरिकी आबादी मजहबी-जेहादीकरण के विस्फोट के लिए कहीं न कहीं बराक ओबामा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वर्ल्ड टरेड सेंटर जहां पर मुस्लिम आतंकवादियों ने हमला किया था उस स्थान को जीरो ग्राउंडबोला जाता है। जीरो ग्राउंड पर मस्जिद के निर्माण की थ्योरी को लेकर अमेरिकी राष्टवादियों की चिंता और इस्लाम के प्रति घृणा चरम स्थिति पर रही है। उल्लेखनीय है कि बराक ओबामा ने जीरो ग्राउंडपर मस्जिद निर्माण का समर्थन किया था।
अमेरिकियों का गौरव वर्ल्ड टरेड सेंटर पर जिस मुस्लिम आतंकवादियों ने हमला कर हजारो लोगों को मौत का नींद सुला दिया हो उसी स्थान पर मस्जिद के निर्माण की स्वीकृति को अमेरिका का इस्लामिकरण के तौर पर ही देखा गया। मुस्लिम आतंकवाद के खिलाफ अभियान में अमेरिका आज जर्जर आर्थिक स्थिति में पहुंच गया है व हजारों अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में मारे गये हैं। इसकी चिता अमेरिकियों को नहीं है। अमेरिकियों की चिंता मुस्लिम आबादी की बढ़ती संख्या व मुस्लिम आबादी की जेहादी मानिसकता के साथ ही साथ अमेरिका से इत्तर ईरान व पाकिस्तानी संप्रभुता के साथ सहचर होने को लेकर है। जब तक अमेरिका अपनी जेहादी मुस्लिम आबादी का प्रबंधन नहीं कर लेता है तबतक वह आतंकवाद से मुक्ति पा ही नहीं सकता है।
वर्ल्ड टरेड सेंटर पर हुए मुस्लिम-जेहादी हमले के बाद तत्कालीन राष्टपति जार्ज बुश ने मुख्यः तीन लक्ष्य तय किये थे। तीन लक्ष्यों में एक अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का सफाया करना और दूसरा इराक में सदाम हुसैन की सरकार का सफाया करना और तीसरा मुस्लिम आबादी के नायक व अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को जींदा या मुर्दा पकड़ना था। जार्ज बुश ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार और इराक में सदाम हुसैन के सफाये की उपलब्धि हासिल तो कर ली थी पर ओसामा बिन लादेन को पकड़ने में सफलता उन्हें हासिल नहीं हुई थी। पाकिस्तान व आईएसआई पर अति विश्वास से जार्ज बुश को सफलता नहीं मिली थी। सीआईए के दस्तावेजों के खुलासे से यह स्पष्ट हुआ कि जार्ज बुश के कार्यकाल में ओसामा बिन लादेन की गर्दन तक पहुंच कर भी सफलता दूर रही थी। इस कारण कि पाकिस्तान की सैनिक-असैनिक नेतृत्व और आईएसआई ने अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था के आख में धूल झोंका। बराक ओबामा प्रशासन ने थोड़ी समझदारी दिखायी और आईएसआई व पाकिस्तान की सैनिक-राजनीतिक नेतृत्व पर अति विश्वास करना छोड़ दिया। खुद के भरोसे अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मार कर अपने मुस्लिम आतंकवाद के खिलाफ अभियान के मुख्य लक्ष्य हासिल कर लिया।
बराक ओमाबा और उनकी सत्ता-प्रशासन की टीम खुशफहमी कुछ ज्यादा ही दिखायी है। ओसमा बिन लादेन के मारे जाने पर पाकिस्तान और आईएसआई ने जिस प्रकार से अमेरिका विरोधी अभियान को अंजाम दिया है और दुनिया भर की मुस्लिम आबादी ने ओसामा बिन लादेन को शहीद घोषित कर अमेरिका के खिलाफ खूनी-जेहादी मानसिकता का बीजारोपन किया है। इसके निहितार्थ गंभीर है। अमेरिका की संप्रभुता खुद मुस्लिम आबादी की जेहादी मानिकसता से दग्ध है। फिर भी अमेरिका को जेहादी-खूनी मानसिकता से ग्रसित मुस्लिम आबादी से प्रेम क्यों?
कोई भी राष्ट बाहरी आक्रमण से अधिक भीतर की विंसगतियों व राष्टद्रोहियों की करतूतों व परसंप्रभुता के प्रति समर्पण से कमजोर होता है और पराजित होता है। इस परिपेक्ष्य या कसौटी पर देंखे तो भारत और अमेरिका की एक ही चुनौतियां हैं। यह चुनौती राष्टद्रोहियों के परसंप्रभुता के प्रति समर्पण से है। आईएसआर्इ्र और ईरान ने अमेरिका की मुस्लिम आबादी को अमेरिका के संघीय ढांचे के खिलाफ ही खड़ा कर दिया है। शीतकाल में अमेरिका ने पाकिस्तान/अरब और अफ्रीकी देशों की मुस्लिम आबादी को अपने यहां बसने व फलने व फुलने का खूब मौका दिया। अमेरिका की तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व को मुस्लिम आबादी की जेहादी मानसिकता और एकमेव इस्लामिक आबादी के प्रति समर्पण के खतरे नहीं दिखे? यही अमेरिकी संकट की नींव है। इस्लाम के आगमन से ही स्पष्ट हो गया था कि इस्लामवलम्बी एकमेव इस्लाम के प्रति समर्पण रखते हैं। इनके लिए राष्ट की परिकल्पना इस्लाम विरोधी हैं। ये पूरे इस्लाम को अपना राष्‍ट्र मानते हैं। इसलिए मुस्लिम आबादी के लिए अमेरिकी राष्ट की अवधारणा या समर्पण कोई अर्थ ही नहीं रखता है। हेडली जैसे सैकड़ों अमेरिकी मुस्लिम खुद अमेरिका के लिए काल बने हैं। आईएसआई और ईरान के लिए काम करने वालों की संख्या मे हजारो में है। वास्तव में आईएसआई और ईरान ने मुस्लिम आबादी को अमेरिका में दीर्धकालिक स्वार्थ के लिए प्रस्थापित करायी थी। मकसद यूहुदी आबादी का विध्वंस करना और अमेरिकी राजनीति को स्थायीतौर पर प्रभावित करना। मुस्लिम आबादी बम-गोली की भाषा बोल सकती है पर रचनात्मकता के साथ ही साथ राजनीति के अन्य हिस्सों में चैंपियन नहीं हो सकती है। यूहुदी आबादी आज भी अपने रचनात्मकता और समर्पण के कारण अमेरिका के नियामकों को नियंत्रित और प्रभावित करती है।
अमेरिका ने खुद यह माना है कि वह आज भी मुस्लिम आतंकवाद के निशाने पर है और उस पर खतरा टला नहीं है। अलकायदा सहित जितने मुस्लिम आतंकवादी हैं फिर से सक्रिय होकर अमेरिका पर हमला करने के लिए तैयार बैठे हैं। ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद मुस्लिम आतंकवादी संगठन फिर से सक्रिय और खूंखार होने के लिए बड़े हमले करने की योजना बना रहे हैं। अमेरिका सहित पूरी दुनिया को यह खुशफहमी नहीं रखनी चाहिए कि ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद मुस्लिम आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक अभियान की सभी जरूरी लक्ष्य पूरे हो गये हैं। अलकायदा आज दम तोड़ता जरूर दिखायी देरहा है पर सच यह भी है कि दुनिया की मुस्लिम आबादी जेहादी मानसिकता से और ग्रसित हो गयी है। यूराप और अमेरिका की मुस्लिम आबादी सीधेतौर अपने लिए अलग शरीयत शासन-प्रशासन की संस्कृति मांग रही हैं। यह तथ्य भी है कि हाल के दिनों में अमेरिका और यूरोप में जितने मुस्लिम आतंकवादी पकड़े गये हैं उनकी संप्रभुता व नागरिकता के स्थान विंदु यूरोप व अमेरिका ही थे। वर्ल्ड टरेड सेंटर पर हमला करने वाले अधिकतर आतंकवादी किसी न किसी रूप से अमेरिकी नागरिकता के स्थान विंदु से जुड़े हुए थे। मुस्लिम आतंकवादी संगठन अब पाकिस्तान व अरब से मुस्लिम आतंकवाद आउटसोर्सिंग करने के स्थान पर यूरोपीय व अमेरिकी नागरिकता धारण करने वाली मुस्लिम आबादी को ही जेहादी बना रहे हैं। इस नीति में मुस्लिम आतंकवाद संगठन सफल भी हैं।
अफगानिस्तान में तालिबान फिर से खतरनाक होकर सत्ता हथियाने के आस-पास है। अमेरिका अफगानिस्तान से निकलने के प्रयास में है। आईएसआई अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का स्थापना चाहती है। आईएसआई अपने मकसद के नजदीक पहुंचती दिखाई दे रही है। फिर भी अमेरिकी मदद आईएसआई-पाकिस्तान को क्यों? अब सवाल यह उठता है कि मुस्लिम आतंकवाद का दमन कैसे होगा? यह एक बड़ा सवाल है। दुनिया की सभी सभ्य सरकारों को अब इस्लामिक-जेहादी मानसिकता पर स्पष्ट राय रखनी होगी। इस्लामिक शरीयत से संबधित अराजक कानूनों से तोबा करनी होगी? अराजक तौर पर आबादी बढ़ाने और अपने लिए अलग कानून की मांग करने वाली आबादी पर नियंत्रण जरूरी है। एक देश-दो कानून की उदारता त्यागनी होगी। अमेरिका खुद मुस्लिम जेहादी आबादी की खाई में जा रहा है। जिस वर्ल्ड टरेड सेंटर पर मुस्लिम आतंकवादियों ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुलाया उस स्थान पर मस्जिद बनाने की नीति क्यों चढ़ी। मस्जिद की जगह आतंकवाद विरोधी संग्रहालय या पार्क का निर्माण क्यों नहीं? मस्जिद बनाने की नीति मारे गये लोगों और उनके परिजनों का अपमान नहीं है? जेहादी-रक्तपिशाचु मुस्लिम आबादी से प्रेम क्यों? अमेरिका का संकट यही है।

No comments: