Saturday, January 21, 2012

देश की राजनीति पर विदेशी प्रभाव


अखिल भारत  हिन्‍दू महासभा

49वां अधिवेशन पा‍टलिपुत्र-भाग:4

(दिनांक 24 अप्रैल,1965)

अध्‍यक्ष बैरिस्‍टर श्री नित्‍यनारायण बनर्जी  का अध्‍यक्षीय भाषण

प्रस्‍तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र

आज जो दल कांग्रेस शासन को समाप्‍त कर स्‍वयं सत्‍तारूढ़ होने के इच्‍छुक हैं हमें उन राजनैतिक दलों के गुणों और क्रिया पद्धति पर भी विचार करना चाहिए। दुर्भाग्यवश  आज भारत के सभी प्रमुख प्रतिपक्षी दलों और उनके अवयवों पर एक बड़ी यात्रा तक विदेशी प्रभाव ही नहीं अपितु उन्‍हें विदेशों से आर्थिक सहायता भी उपलब्‍ध होती है। इसलिये यह स्‍वाभाविक ही है कि वे दल राष्‍ट्रहित के स्‍थान पर अपने सहायता दाताओं की आकांक्षाओं और हितों को ही प्रश्रय देते हैं।
केन्‍द्रीय गृहमंत्री श्री नंदा ने यह रहस्‍योद्घाटन किया है कि भारत की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी स्‍वदेश के बाहर स्थित स्रोतों से केवल बौद्धिक प्रेरणा ही प्राप्‍त नहीं करती अपितु उनसे इस वित्‍तीय सहायता भी प्राप्‍त होती है और यह दल उन्‍हीं के हितों का संवर्धन भी करता है। वस्‍तुत: आज कांग्रेसी नेताओं ने ही देश में यह सामान्‍य भावना उत्‍पन्‍न कर दी है कि कम्‍युनिस्‍ट पार्टी का रूस समर्थक धड़ा वैसा राष्‍ट्रद्रोही नहीं है जैसा की चीनी धड़ा है।
कांग्रेस द्वारा भारतीय जनता के साथ की जा रही यह एक अन्‍य धोखाधड़ी  है और इसका वास्‍तविक कारण यह है कि सत्‍तारूढ़ दल में यह साहस नहीं है कि वास्‍तविकता को स्‍वीकार कर कम्‍युनिस्‍ट जगत को रूस्‍ट करने की जोखिम उठा सके। इसके साथ ही साथ वह अपने आपको भी मार्क्‍सवादी समाजवाद के सिद्धांतों का प्रतिपादक समझा है। वस्‍तुस्थिति यह है कि जहां तक सत्‍ता के लिये संघर्ष करने का प्रश्‍न है, कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के दोनों धड़े ही संयुक्‍त है। कलकत्‍ता नगर निगम के हाल ही के निर्वाचनों में भी उन्‍होंने राष्‍ट्रीय संग्राम समिति के नाम से एक संयुक्‍त मोर्चे का गठन किया था, जिसके अंतर्गत दोनों ही धड़ों ने संयुक्‍त रूप से निर्वाचन लड़ा।
इसके अतिरिक्‍त श्रमिक संगठनों में दोनों धड़े साथ-साथ काम कर रहे हैं और चीन समर्थक नजरबंदों की रिहाई के  लिये चलाये जाने वाले आंदोलन में दोनों का ही समान रूप से योगदान वामपंथी, दक्षिणपंथी तथा मध्‍यममार्गी कम्‍युनिस्‍टों की मिली भगत का ठोस प्रमाण है। दोनों धड़ों का ध्‍वज समान है, आदर्श एक है, घोषणाओं में भी भिन्‍नता नहीं तथा कार्य पद्धति में एकरूपता है, घोषणाओं में भी भिन्‍नता नहीं तथा कार्य पद्धति में एकरूपता है। उनमें जो सामान्‍य सा मतभेद अथवा प्रतिद्वन्दिता दिखाई देती है वह तो उसी दिन समाप्‍त हो जायेगी जिस दिन उनके सूत्रधार उन्‍हें ऐसा करने के लिये कहेंगे। आज कम्‍युनिस्‍टों के ही कुछ नेताओं ने अपने प्रतिद्वन्दियों पर यह आरोप भी लगाया है कि वे शत्रु देशों पर जाली भारतीय मुद्रा का आयात कर रहे हैं।
स्‍वतंत्र पार्टी तो अमरीका  एवम् अन्‍य पूंजीवादी देशों के साथ गठबंधन का खुला समर्थन करती है। प्रजा समाजवादी दल भी कांग्रेस ही पृथक होने वाला एक दल है। इस दल की भी जो कुछ शक्ति और अस्तित्‍व है वह ब्रिटिश और भारतीय पूंजीपतियों की कृपा दृष्टि का परिणाम है।
जो अन्‍य छोटे-छोटे राजनीतिक दल हैं उनका भी उपरोक्‍त दलों से थोड़ा-बहुत मतभेद है और इसका अस्तित्‍व भी उन लोगों के आत्‍मानुराग पर ही अवलम्बित है जो इन्‍हें संरक्षण प्रदान करते हैं। उनका विदेश शक्तियों से संबंध इतना सुस्‍पष्‍ट तो नहीं है किन्‍तु उनकी गतिविधियां और इनके नेताओं की हलचलों से यह तथ्‍य बड़ी सरलता सहित स्‍पष्‍ट हो जाता है।

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