Saturday, February 25, 2012

तकफीर मुल्लों का हथियार !

 
सत्‍यवादी                      प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय
 

मुसलमान मौलवी जब किसी दुसरे गिरोह के लोग पर काफ़िर ,या मुशरिक होने का झूठा आरोप लगाते हैं ,तो इसे तकफीर(تكفير  ) कहा जाता है . मेरे एक मुस्लिम दोस्त ने इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने को कहा था ,क्योंकि अक्सर देखा गया है कि जोभी व्यक्ति इन मुल्लों के विचारों से रत्ती भर भी असहमति प्रकट करता है ,यह मुल्ले उसे काफ़िर(كافر     ) ,मुशरिक( مُشرك) ,और बिदअती( بِدعتي) घोषित करके उसके खिलाफ फ़तवा दे देते हैं .इस लिए बिना किसी द्वेषभाव के यह लेख दिया जा रहा है .
यद्यपि मुस्लिम विद्वान दावा करते हैं कि इस्लाम में बादशाही , और तानाशाही के लिए कोई स्थान नहीं है .औरमुस्लिमों को सिर्फ अल्लाह के द्वारा बताये गए मार्ग पर चलना चाहिए ..लेकिन इतिहास गवाह है कि , जैसे जैसे इस्लाम का विस्तार होता गया उसमे मुल्लों, मुफ्तियों का वर्चस्व होने लगा .पहले जब यजीद नामके अत्याचारी शासक ने इस्लाम के नाम पर अपनी मर्जी लोगों पर थोपना चाही थी ,जिसका परिणाम कर्बला के युद्ध के रूप में सामने आया था .और मुहम्मद साहिब के नवासे इमाम हुसैन ने खुद अपने और अपने परिवार के 72 लोगों की क़ुरबानी देकर इस्लाम को सही रस्ते पर लाना चाहा था .लेकिन कुछ समय के बाद फिर से इस्लाम में कई फिरके हो गए , और हरेक गिरोह मुसलमानों की नकेल अपने हाथों में रखना चाहता है .सब जानते हैं कि कुरान की 114 सूरतें करीब 23 साल में जमा की गयीं थी . और कालक्रम के अनुसार संकलित नहीं की गयी हैं .इसलिए ही उसका सही अर्थ और भाव , तात्पर्य समझने में कठिनता होती है .कुरान की किसी सूरा या आयत का सही भाव समझने के लिए उसका समय (Time), स्थान (Place),परिस्थिति (Circumstances)और जिसको संबोधित कर के कहा गया है , उसके बारे जानना जरुरी है ,और ऐसा न करने से वैचारिक मतभेद होजाने से फिरके बन जाते हैं .जो एक दूसरे के शत्रु बन जाते हैं .शिया और सुन्नियों में अक्सर खून खराबा होता रहता है , लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सुन्नियों में भी कई मज़हब (Sects ) है जो एक दुसरे को काफ़िर ,या मुशरिक कहते रहते हैं .इनमे ,हनफी , मलिकी ,शाफयी,और हम्बली ,मुख्य है , भारत में देवबंदी और बरेलवी अक्सर लड़ते रहते हैं .यहाँ पर कुरान और प्रमाणिक हदीसों के आधार इसका खुलासा दिया जा रहा है -
1-तकफीर के कुछ नमूने 
एक दूसरे के इमामों के अनुयायिओं को काफर या मुशरिक बताना कोई नयी बात नहीं है ,पहले भी ऐसा होता था ,देखिये
A.शाफयी कहते हैं कि इस्लाम में अबू हनीफा जैसा बुरा आदमी नहीं हुआ .
"ولدت لا أحد في الإسلام أكثر شرا من "أبو حنيفة"
Imam Dhahabi records in Syar alam al-Nubala, Volume 10 page 95:
B.इमाम अब्दुल हयी काजी बिन मूसा अल हनफी ( मृत्यु 506 हि) ने शाफियों के बारे में कहा ,अगर मेरे पास हुकूमत होती तो ,मैं शाफियों पर जजिया लगवा देता .
لو كان لى أمر لاخذت الجزية من الشافعية


Meezan al Etidal, Volume 4 page 52

C.शाफयी विद्वान् मुहम्मद बिन मुहम्मद अबू मंसूर ने कहा ,अगर मेरे हाथोंमे सत्ता होती तो ,मैं हम्बलियों पर जजिया लगाने का आदेश जारी कर देता .
وقيل أن البروي قال لو كان لي أمر لوضعت على الحنابلة الجزية
Shazarat al-Dahab, Volume 4 page 271:
D.शेख अबू हातिम हम्बली ने अपने फिरके के बारे में कहा है 
जो भी हम्बली नहीं है ,वह मुस्लिम नहीं है 
فكل من لم يكن حنبليا فليس بمسلم
जो भी व्यक्ति इमाम हम्बल के निर्णय नहीं मानता उस पर इतनी लानत है ,जितनी जमीन पर धूल के कण है .
فلعنة ربنا أعداد رمل على من رد قول أبي حفيفة 
Al-Dur al-Mukhtar Sharah Tanveer al-Absar, page 14

E..इमाम याफी ने अपनी किताब"अल जनान " में लिखा है ,कि जब में दमिश्क में था तो उसके आसपास के शहरों में घोषणा कि गयी थी ,कि जोभी इब्ने तय्यमा कि किताब " मिन्हाज अस सुन्नाह " पर विश्वास करेगा तो उसे क़त्ल किया जाये और उसकी संपत्ति जब्त की जाएगी 
ثم نودي بدمشق وغيرها من كان على عقيدة ابن تيمية حل ماله ودمه 
Mirat al-Janan, Volume 2 page 248:

2-तकफीर का कारण
देखा गया है कि ,जब कोई खुद को बहुत बड़ा विद्वान समझने लगता है ,तो उसमे घमंड आ जाता है ,और वह दूसरों का मजाक उड़ाने लगता है ,यही बात कुरान ने इन आयतों में बताई है,मुसलमानों को इसे जरुर समझना चाहिए .
"क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो , खुद को बड़ा पवित्र होने का दम भरते हैं ,लेकिन अल्लाह जिसे चाहे पवित्रता प्रदान करता है " 
सूरा -निसा 4 :49 
 यह लोग समझते हैं कि यही बुनियाद पर हैं ,सुन लो यह बिलकुल झूठे है इनपर शैतान छा गया है "सूरा- मुजादिला 58 :18 -19 
"हे ईमान वालो कोई गिरोह दूसरे गिरोह का मजाक नहीं उडाये ,हो सकता है वह उन से भी अच्छे हों "सूरा -हुजुरात 49 :11 
3-मौलवियों कि चालाकी 
जादातर मुसलमान अरबी भाषा में निष्णात नहीं होते हैं . और मौलवी कुरान कि आयतों का जो भी अर्थ करदेते हैं मुसलमां उसी पर यकीं कर लेते हैं . इसी तरकीब से मौलवी मुसलमानों को जहाँ चाहे भिड़ा देते हैं .,जैसा इस हदीस में है
अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि हजरत उमर खारजियों को दुनिया कि सबसे ख़राब मखलूक कहते थे , और कहते थे यह लोग पहले जो आयतें काफिरों के लिए कही गयी थीं ,उनको ईमान वालों के लिए लागु कर देते हैं ."
باب ‏ ‏قتل ‏ ‏الخوارج ‏ ‏والملحدين ‏ ‏بعد إقامة الحجة عليهم ‏ ‏وقول الله تعالى ‏
وما كان الله ليضل قوما بعد إذ هداهم حتى يبين لهم ما يتقون ‏‏وكان ‏ ‏ابن عمر ‏ ‏يراهم شرار خلق الله ‏ ‏وقال إنهم انطلقوا إلى آيات نزلت في الكفار فجعلوها على المؤمنين
Sahih Bukhari, Chapter of Killing the Khawarjites and Mulhideen, Volume No. 6, Page No. 2539]

और इसीलिए यह आयत नाजिल हुई थी .
ऐसा नहीं हो सकता कि अल्लाह लोगों को मार्ग दिखाने के बाद फिर से पथभ्रष्ट कर दे ,जबकि उनको पता हो कि उनको किस से बचना चाहिए .सूरा -तौबा 9 :115 
4-रसूल की भविष्यवाणी 


रसूल को मुसलमानों के इस स्वभाव का पता था ,कि यह लोग आगे चल कर फालतू बातों पर एक दुसरे का खून बहायेंगे .इसी लिए हदीस के कहा है
उकबा बिन आमिर ने कहा ,एक बार जब रसूल उहद के शहीदों के जनाजे की नमाज पढ़ चुके तो बोले मैंने तुम्हें कौसर का झरना और दुनिया के खजानों की चाभियाँ अता कर दी हैं .मुझे इस बात का डर नहीं है की तुम मेरे बाद अल्लाह के साथ किसी को शरीक करोगे ,लेकिन मुझे यह डर है की तुम नाहक की बात पर एक दुसरे का खून बहाओगे "


أن النبي ‏ ‏صلى الله عليه وسلم ‏ ‏خرج يوما فصلى على أهل ‏ ‏أحد ‏ ‏صلاته على الميت ثم انصرف إلى المنبر فقال ‏ ‏إني ‏ ‏فرط ‏ ‏لكم وأنا شهيد عليكم وإني والله لأنظر إلى حوضي الآن وإني أعطيت مفاتيح خزائن الأرض ‏ ‏أو مفاتيح الأرض ‏ ‏وإني والله ما أخاف عليكم أن تشركوا بعدي ولكن أخاف عليكم أن تنافسوا فيها 
Sahih Bukhari-Volume 2, Book 23, Number 428: 
5-रसूल की नसीहत 


जो मौलवी किसी को काफ़िर या मुशरिक कहकर झूठा आरोप लगाते हैं उनके बारे में यह हदीस में यह कहा है
"अनस बिन मलिक ने कहा कि रसूल ने इन तीन बातों से बचने को कहा है ,किसी ऐसे व्यक्ति का क़त्ल करना जो कलमा पढ़ता हो ,चाहे वह कैसा भी गुनाहगार हो ,किसी को काफ़िर कहना और किसी को इस्लाम से खारिज बताना .रसूल ने कहा कि यही इमान की बुनियाद है .


‏ ‏عن ‏ ‏أنس بن مالك ‏ ‏قال ‏
قال رسول الله ‏ ‏صلى الله عليه وسلم ‏ ‏ثلاث من ‏ ‏أصل ‏ ‏الإيمان ‏ ‏الكف ‏ ‏عمن قال لا إله إلا الله ولا نكفره بذنب ولا نخرجه من الإسلام بعمل والجهاد ماض منذ بعثني الله إلى أن يقاتل آخر أمتي ‏ ‏الدجال ‏ ‏لا يبطله ‏ ‏جور ‏ ‏جائر ‏ ‏ولا عدل عادل والإيمان بالأقدار 
Sunnan Abu Dawud, Volume No. 2, Hadith # 2170]
कुरान में भी कहा गया है ,
हे ईमान वालो जब तुम बाहर निकलो तो ध्यान से देख लो , और जो कोई तुम्हें सलाम करे तो ,उस से यह नहीं कहो ,कि तू मोमिन नहीं है " 
सूरा - निसा 4 :94 
6-झूठा आरोप लगाने का नतीजा 
यदि कोई किसी पर काफ़िर या मुशरिक होने का मिथ्या आरोप लगता है तो उसकी सारी इबादत का फल छिन जाता है ,
अबू हुजैफा इब्न यमामा ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति कुरान कि इतनी तिलावत करे कि उसका चेहरा ऐसा नूरानी हो जाये कि वह दूर से ही पहचान लिया जाये ,लेकिन उसकी यह सारी विशेषता उसी समय छिन जाएगी जब वह पडौसी के पीठ पीछे उसकी निंदा करेगा ,या उसपर हथियार उठाएगा , या मोमिन को मुशरिक बताएगा "


أن حذيفة يعني ابن اليمان رضي الله عنه حدثه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلّم «إن مما أتخوف عليكم رجل قرأ القرآن حتى إذا رؤيت بهجته عليه وكان رداؤه الإسلام اعتراه إلى ما شاء الله انسلخ منه ونبذه وراء ظهره وسعى على جاره بالسيف ورماه بالشرك» قال قلت يانبي الله أيهما أولى بالشرك المرمي أو الرامي ؟ قال «بل الرامي»
إسناد جيد


Sahih, Tahqiq Nasir Albani, Volume 001, Page No. 200, Hadith Number 81
Silsilat al-ahadith al-sahihah - Albani Volume 007-A, Page No. 605, Hadith Number 3201
7-शांतिपूर्ण समाधान 
यदि कोई मुल्ला मौलवी किसी पर काफ़िर और मुशरिक होने का आरोप लगाता है ,और आपस में विवाद पैदा करता है ,तो इस हदीस में एकही शांति पूर्ण उपाय बताया गया है , के वह किसी के बहकाने में न आयें .
उबैदुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि मेरा एक पडौसी कहता है कि मैं शिर्क करता हूँ , उमर ने कहा तुम कलमा पढो ,पडौस का शक दूर हो जायेगा .
عن عبيد الله بن عمر عن نافع أن رجلا قال لإبن عمر أن لي جارا يشهد علي بالشرك فقال قل لا إله إلا الله تكذبه
Imam Ibn Asakir in Tibyan al Kadhib al Muftari, Page No. 373] 
जकारिया नायक किस तरह के कुतर्कों से लोगों में विवाद करता है उसका प्रमाण देने के लिए यह विडियो देखिये
http://www.youtube.com/watch?v=CS2lB07Ve9s
बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज भी इमाम बुखारी जैसे लोग मुसलमानों के ठेकेदार बने हुए हैं , और अपने निजी स्वार्थों के लिए मुसलमानों को किसी न किसी पार्टी को वोट देने का फतवा देते रहते हैं .इसी तरह सलमान खुर्शीद मुसलमानों का हमदर्द होने का ढोंग करके ,उनके वोटों से राहुल विंची उर्फ़ "गंदी " को जीवन भर के किये प्रधानमंत्री बनाना चाहता है .और मुसलमानों को हमेशा के लिए उसका मुहताज बनाना चाहता है .
मेरा सभी मुस्लिम युवा पीढ़ी के लोगों को सलाह है कि , वह ऐसे स्वार्थी मुल्लों और नेताओं के चक्कर में न फसें और खुले दिमाग से देश की मुख्यधारा में शामिल हों .और किसी की कठपुतली नहीं बनें .

http://www.ahlus-sunna.com/index.php?option=com_content&view=article&id=82&Itemid=14.

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