Friday, February 10, 2012

कांग्रेस एक राजनैतिक चमगादड़ जो पशु है न पक्षी


अखिल भारत  हिन्‍दू महासभा
49वां अधिवेशन पा‍टलिपुत्र-भाग:5
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
अध्‍यक्ष बैरिस्‍टर श्री नित्‍यनारायण बनर्जी  का अध्‍यक्षीय भाषण 

प्रस्‍तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र

तीन राजनीतिक धाराएं

    समान्‍यत: यह कहा जा सकता है कि आज भारत के तीन राजनैतिक प्रवाह हैं। एक वह जिसका स्रोत पूंजीवाद में है, दूसरा साम्‍यवाद से पोषित है तथा तीसरी धारा साम्‍प्रदायिकता (?) से प्रेरणा पाती है। स्‍वतंत्र पार्टी तथा जनसंघ आदि प्रथम प्रवाह के अंतर्गत  है तथा कम्‍युनिस्‍ट पार्टी एवम् समाजवादी दल दूसरी धारा से प्रेरित हैं तो हिंदू महासभा तृतीय प्रवाह का प्रतीक है। कांग्रेस का संबंध वस्‍तुत: पूंजीवादी गुट से है और उसी के कारण इसका अस्तित्‍व भी है। किन्‍तु लोगों के आंखों में धूल झोंकने के लिये वह अपना संबंध द्वितीय धारा से जोड़ते हैं। वस्‍तुत: कांग्रेस को एक राजनैतिक चमगादड़ का नाम दिया जा सकता है जो पशु है न पक्षी। सच तो यह है कि आज उसकी कोई आधारभूत विचारधारा नही है। घटनाक्रम  इस सत्‍य की साक्षी प्रस्‍तुत करता है कि पूंजीवाद की दृष्टि में राष्‍ट्रवाद के लिये शायद ही कोई सम्‍मान हो। वे तो वस्‍तुत: अपने व्‍‍यक्तिगत स्‍वार्थों को ही महत्‍व देते हैं। कार्ल मार्क्‍स के अनुसार तथा तर्क मीमांसा से भी यह तथ्‍य स्‍पष्‍ट है कि कम्‍युनिस्‍ट कदापि राष्‍ट्रवादी नहीं हो सकते। इन गुटों एवं दलों की दृष्टि में दलीय हितों के ही सर्वोच्‍च स्‍थान और महत्‍व प्राप्‍त है और राष्‍ट्रीय हितों को वे द्वि‍तीय  स्‍थान देते हैं।

पोप की भारत यात्रा 

हमारी उपरोक्‍त धारणा की पुष्टि 1964 के नवम्‍बर मास पोप पाल षष्‍ठम की भारत यात्रा और बम्‍बई में आयोजित हुई। निर्धन व पिछड़े हुये हिंदुओं के धर्मांतरण का भारतीय राजनीति पर जो दुष्‍प्रभाव पड़ा है उसको प्रत्‍येक विचारशील व्‍यक्ति स्‍वीकार करता है। पाकिस्‍तान की स्‍थापना, स्‍वतंत्र कश्‍मीर तथा नागालैण्‍ड की मांग आदि धर्मांतरण के ही दुष्‍परिणाम हैं। भारत में धर्म परिवर्तन का अर्थ राष्‍ट्रीयता परिवर्तन के ही समान है? इतने पर भी भारत में विदेशी ईसाई सत्‍ता की शक्ति का प्रदर्शन करने तथा धर्मांतरण के मार्ग को और अधिक विस्तृत करने की ईसाईयों की चाल का हिंदू महासभा के अतिरिक्‍त अन्‍य किसी भी राजनैतिक दल ने विरोध नही किया। इसका प्रमुख कारण यही है कि पूंजीपतियों द्वारा सभी राजनैतिक दलों की राजनीतिक चेतना विदेशी ईसाई शक्तियों के समक्ष गिरवी रख दी गई है। कम्‍युनिस्‍ट तो धर्मांतरण को प्रश्रय देते ही हैं क्‍योंकि वे जानते हैं कि यदि किसी राष्‍ट्र अथवा जाति का धार्मिक विश्‍वास एक बार डगमगा जाएगा तो उसके सदस्‍य नास्तिकता तथा साम्‍यवाद द्वारा पढ़ाए गए भौतिकता के पाठ को सुगमता सहित ग्रहण कर लें।
     जनसंघ तथा राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ एवम कतिपय अन्‍य सामाजिक संसथाओं ने भारतीय राष्‍ट्रीयता पर इन घटनाओं के द्वारा पड़ने वाले कुप्रभावों को अनुभव किया। आरंभ में वे इस परिषद् और पोप के आगमन के विरूद्ध  और पोप के आगमन के विरूद्ध हिंदू महासभा द्वारा आरंभ किये गये जन जागरण आंदोलन में सहयोग प्रदान करते रहे किंतु अंतिम समय पर इस मोर्चे पर हिंदू महासभा सर्वथा एकाकी ही खड़ी रह गई। क्‍योंकि इन सभी संगठनों के नेताओं ने सार्वजनिक वक्‍तव्‍यों द्वारा यह उपदेश देते हुये मैदान छोड़ दिया कि एक धार्मिक प्रमुख के आगमन तथा धार्मिक सम्‍मेलन का विरोध नहीं किया जाना चाहिये।
इतना ही नहीं महाराष्‍ट्र सरकार ने तो 300 हिंदू महासभाईयों को नजरबंद कर दिया। इनमें प्रदेश हिंदू महासभा के अध्‍यक्ष धर्मवीर विष्‍णु रामराव पाटिल तथा महामंत्री श्री विक्रम नारायण सावरकर सम्मिलित थे इनको नजरबंद करने के लिये भारत सुरक्षा नियमों का ही दुरूपयोग किया गया।

कांग्रेस तथा अन्‍य दलों के नेता इतने बुद्धिमान नहीं हैं कि वे सेंट जेवियर के शव के सार्वजनिक सम्‍मान आदि राष्‍ट्र विरोधी प्रदर्शनों के भावी परिणामों को समझ न सकते हों। उल्‍लेखनीय है कि सेंट जेवियर ही गोवा में हिंदुओं को ईसाई बनाने के लिये चलाये गये अभियान का प्रथम स्‍तम्‍भ था। यह धर्मांतरण भी हत्‍या, जीवित ही अग्निदाह और अन्‍य अनेक अमानवीय तरीकों से पुर्तगाली राज्‍य सत्‍ता की छत्रछाया में सम्‍पन्‍न हुआ।  भारत का सत्‍तारूढ़ दल भी विदेशी ईसाई मिशनरियों की राष्‍ट्रद्रोही गतिविधियों से भली भांति परिचित है। उनकी इन गतिविधियों का नियोगी आयोग और रेगे आयोग के प्रतिवेदनों द्वारा भण्‍डाफोड़ किया गया।
उल्‍लेखनीय है कि इन आयोगों का गठन वर्तमान सरकार ने ही कर उच्‍च न्‍यायालयों के भूतपूर्व न्‍यायधीशों को इन आयोगों का अध्‍यक्ष बनाया था। कांग्रेसी नेता तो इतने मंदबुद्धि तो हैं नहीं कि उन्‍होंने न समझा हो कि पोप और उनके लाव लश्‍कर की यह राजकीय मानवन्‍दना तथा ईसाई नेतृ तण्‍डली को दी गई खुली सहायता ईसाई मत के लिये बढ़ावा व प्रोत्‍साहन देना है और इससे भारत में धर्मांतरण को गति मिलेगी। इसके साथ ही साथ उनके ये कार्य भी धर्म निरपेक्षता की उस नीति के सर्वथा विपरीत है जिनका सत्‍तारूढ़ दल की ओर से चौराहों पर ढोल पीटा जाता है। कांग्रेसी शासकों को यह भी विदित है कि विगत 13 वर्षों में (1952 से 1965 ई0 तक) उनके शासन काल में भारत में रहने वाली ईसाई मिश‍नरियों की संख्‍या 42 हजार बढ़ी ज‍बकि सम्‍पूर्ण भारत में ब्रिटिश शासन था उन दिनों इनकी संख्‍या 60 हजार ही थी। 

इन सभी तथ्‍यों से कांग्रेस, प्रजा समाजवादी दल, संयुक्‍त समाजवादी दल और जनसंघ तथा स्‍वतंत्र पार्टी के नेता सुपरिचित हैं। किंतु दुर्भाग्‍य है कि यह सब कुछ जानकर भी वे कुछ नहीं कर सकते। इतना ही नहीं वे उनकी राष्‍ट्रद्रोही गतिविधियों के विरोध में भी मुख नहीं खोल सकते। क्‍योंकि नेता ही दोषी हैं और वे ही उन दलों पर नियंत्रण रखते हैं और उन्‍हें संरक्षण भी देते हैं। वास्‍तव में वे मालिकों की रूष्‍टता को सहन नहीं कर सकते हैं।


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