Tuesday, September 11, 2012

काले कानून को हटाने के लिये जनता को सड़क पर आना होगा

 डॉ0 संतोष राय

कार्टूनिस्‍ट असीम त्रिवेदी ने देश में  बहस के द्वारा एक नयी जंग छेड़ दी है कि क्‍या अत्‍याचारी अंग्रेजों के द्वारा बनाये काले कानून जिसे वे अपनी मनमर्जी से किसी के खिलाफ इस्‍तेमाल करते हुये किसी भी स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी  को गिरफ्तार करके देशद्रोह के आरोप में जेल में ठूंस देते थे। यहां तक कि उसे आजीवन कारावास की सजा तक दिलवा देते थे। तो क्‍या ऐसे काले कानून  को इस देश में आज भी बने रहने देना चाहिये। यदि नही तो देशवासियों को सड़कों पर उतरकर संघर्ष करना होगा वर्ना सरकार हमेंशा इस कानून की आड़ में देशभक्‍तों के खिलाफ उसका जमकर दुरूपयोग करती रहेगी। 

कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने अपनी गिरफ्तारी को ही नायाब तरीके  से  पेश करते  हुये एक उसे आंदोलन बना दिया है। सोशल मी‍डिया असीम का पूरी तरह से साथ व समर्थन दे रहा है।  अन्ना आंदोलन के दौरान दिल्ली के सड़कों पर भ्रष्‍ट  व्यवस्था के विरूद्ध  अपनी आवाज बुलंद करने वाले असीम त्रिवेदी ने जमानत लेने से पूरी तरह से इंकार कर दिया है। उधर पुलिस द्वारा उनकी रिमांड न मांगे जाने  के कारण उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में 24 सितंबर तक के लिए जेल में डाल दिया गया है।
असीम त्रिवेदी के समर्थन में पूरे देश में हंगामा मचा है। प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और वेब मीडिया तक सब ओर बवाल मचा हुआ है। ऐसे में असीम त्रिवेदी भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था के प्रति संघर्षात्‍मक रूख पूरे सरकारी तंत्र को ही एक विचित्र परेशानी में ढकेल दिया है। अपने बनाये कार्टूनों और विचारों पर दृढ़ असीम त्रिवेदी के पक्ष में कानपुर में उनके समर्थकों ने  कोयला घोटाले के आरोपी केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के घर के बाहर प्रदर्शन किया और अविलंब हस्तक्षेप करने की मांग की। लेकिन उधर मुंबई में असीम ने अपनी गिरफ्तारी को ही चुनौती देते हुए स्‍वयं  वकील रखने से भी मना कर दिया है।
ज्ञात रहे कि  8 सितंबर को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सोशल मीडिया को एक बहुत बड़ा सरदर्द बता रहे थे उसी दिन असीम त्रिवेदी ने दिल्ली से मुंबई गये और पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। सनद रहे कि असीम पर कुछ विवादास्पद कार्टून बनाने का आरोप है और उन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है। असीम का कहना है कि सरकार के खिलाफ बोलना देश के खिलाफ बोलना कैसे संभव हो सकता है? उनका कहना है कि उन्होंने भ्रष्‍ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठायी है, एक  ऐसे कानून के खिलाफ आवाज उठायी है जिसे अंग्रेजों ने निरीह जनता के खिलाफ जुल्‍म करने के लिये बनायी थी और वे इसे कहीं से भी नाजायज नहीं समझते हैं।वैसे असीम के इस अड़ियल रुख का सोशल मीडिया में जमकर स्वागत हो रहा है और उनके इस संघर्ष में साथ देने का वायदा किया जा रहा है। पूरे देश को अपने साथ देखकर असीम के इरादे और बुलंद नजर आ रहे हैं।
कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की देशद्रोह के आरोप में हुई गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजों के बनाए इस अत्‍याचारी कानून पर पूरे देश में बहस बहुत तेज हो गई है। ज्ञात हो कि इस कानून को आजादी के परवाने स्‍वतंत्रता सेनानियों द्वाराआजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने 1870 में जारी किया था। मगर ब्रिटेन में सजग जनता के भारी विरोध के बाद 2009 में इस कानून को पूरी तरह से समाप्‍त कर दिया गया, लेकिन भारत के नेताओं ने अनपढ़, जागरूकहीन जनता के कमजोरी का फायदा उठाते हुये इसे अब तक इसे लागू किये हैं। 


अंग्रेजों ने हमारे देश के स्‍वतंत्रता सेनानियों जैसे वीर सावरकर, बाल गंगाधर तिलक इन सभी को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। फर्क इतना है कि वीर सावरकर और तिलक को गोरे अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया था और आज की जागरूक जनता, पत्रकारों, लेखकों, असीम त्रिवेदी जैसे लोगों को काले अंग्रेज गिरफ्तार कर रहे हैं, कब तक करेंगे कहा नही जा सकता। इन सबको देशद्रोही साबित करने के  लिए प्रशासन ने एक ही कानून की मदद ली। एक ऐसा काला कानून जिसे अंग्रेजों ने 1870 में आजादी के आंदोलन को पूरी तरह से पद-दलित करने  के लिए लागू किया था। आरोप है कि सरकारें अपने खिलाफ चलने वाले आंदोलनों को कुचलने के लिए इस कानून का जमकर दुरुपयोग करती हैं।
गौरतलब हो कि  भारतीय दंड विधान यानी आईपीसी की धारा 124 (ए) के मुताबिक कोई भी देश का नागरिक जो अपने शब्दों, इशारों, किसी कृत्‍यों से किसी भी तरह से सरकार के विरूद्ध  घृणा, वैमनस्‍यता या अवमानना फैलाएगा, उसे देशद्रोह का अपराधी  मानते हुए उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है। इस कानून के तहत उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। दुष्‍ट अंग्रेजों ने इस कानून को अपने खिलाफ हर उठने वाली आवाज को दबाने के लिए बनाया था। मगर दु:ख की बात यह है कि अंग्रेज चले गये मगर अंग्रेजों के कानून नही गये। आज भी ये काले अंग्रेज इस कानून को बने रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं ताकि तुरूप के पत्‍ते की तरह कभी भी इसका प्रयोग कर सकें।

 
देश के इन बुरे दिनों में जनता भ्रष्टाचार के विरूद्ध  सड़कों पर आकर अपना रोष जता रही  है, लोग सोशल मीडिया में तरह-तरह से सरकार के खिलाफ अपने भावनाओं को व्‍यक्‍त कर रहे हैं। अगर इस कानून के हिसाब से देखा जाय तो सरकार सभी लोगों को जेल में डाल सकती है। जिस तरह से सरकार इतने बड़-बड़े घोटाले कर रही है उस हिसाब से इस कानून में बदलाव की आवश्‍यकता है।  
कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी से इस बहस की धार को और तेज कर दिया है। ये सीधे-आम इंसान के अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। इस तरह के काले कानूनों को हटाने के लिये आम इंसान को सड़क पर उतरकर आंदोलन करना ही पड़ेगा। अब देखना यह है कि क्‍या ये काले अंग्रेज इस काले कानून को हटाते हैं या जनता को सड़क पर उतरकर बलिदान देना पड़ेगा।


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